साहित्य

समय पर पहुंचिए श्रीमान…!

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भारतीय समाज में “समय” नाम की एक चीज है, लेकिन यह केवल घड़ी की सुईयों में दिखाई देती है, व्यवहार में नहीं।

एक दिन की घटना है, रेलवे प्लेटफार्म पर ढोल-नगाड़ों के साथ स्वागत की तैयारी थी। मिठाई के डिब्बे खुले हुए, माला हाथों में तैयार। कारण बड़ा अनोखा था- गाड़ी ठीक समय पर आ रही थी!
जैसे ही गाड़ी पहुंची, लोग झूम पड़े, ड्राइवर के गले में माला डाली और मुंह में रसगुल्ले भरने लगे। बेचारा ड्राइवर कुछ बोल ही नहीं पाया। जब तक मिठाई के पहाड़ को निगला, तब तक लोग उसे “समय का हीरो” बना चुके थे। और फिर उसने धीरे से कहा- “गाड़ी 24 घंटे लेट आ रही है…” फिर क्या था प्लेटफार्म पर अचानक सन्नाटा छा गया। यह दृश्य केवल रेलवे स्टेशन का नहीं है, यह तो हमारे पूरे समाज का आईना है।

हर कोई दूसरे को समय पर आने की सलाह देता है, लेकिन खुद के लिए “इंडियन टाइम” का बहाना निकाल लेता है।

ऑफिस में कर्मचारी देर से आते हैं और बॉस को कहते हैं “सर, ट्रैफिक बहुत था।”

बॉस खुद देर से आते हैं और बोलते हैं “मीटिंग में अटक गया था।”

शादी में मेहमान खाना खा लेते हैं, लेकिन दूल्हा-दुल्हन ब्यूटी पार्लर में फंसे रहते हैं।

कोई सार्वजनिक कार्यक्रम हो, तो वहां नेता जी की “एंट्री” फिल्मी हीरो जैसी होती है, हमेशा देर से।

परिस्थिति कभी-कभी इतनी हास्यास्पद हो जाती है, कि कार्यक्रम जिनके लिए रखा गया है वे लोग आकर भी ऊब जाते हैं, लेकिन मुख्य अतिथि साहब “फैशन एबल लेट” का रिकॉर्ड तोड़ते रहते हैं।

लेट होने का यह कल्चर इतना गहराता जा रहा है कि अब लोग मज़ाक में कहने लगे हैं
“अरे भाई, इंडियन टाइम है, चलेगा।”
“समय पर आना तो विदेशी आदत है।”
लेकिन सोचिए, यही लेट होना जब किसी डॉक्टर, किसी टीचर या किसी आपात सेवा में होता है, तो इसका नुकसान किसे होता है?

जब डॉक्टर समय पर अस्पताल न पहुंचे तो मरीज की जान तक जा सकती है। जब टीचर क्लास में न पहुंचे तो छात्रों का भविष्य अटक जाता है और जब एम्बुलेंस लेट हो जाए तो भगवान भी मदद नहीं कर पाते। हमारे यहां तो अच्छी खबरें भी लेट पहुंचती हैं, कभी-कभी तो बिल्कुल पहुंचती ही नहीं।

लगता है समय से लेट होना अब हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति और हमारी पहचान बनती जा रही है।लेकिन सच्चाई यही है, जो समय का सम्मान करता है, समय भी उसका सम्मान करता है।
समय कभी किसी का इंतजार नहीं करता, वह अपनी रफ़्तार से चलता रहता है। अगर हम समय को हल्के में लेंगे, तो समय भी हमें हल्के में ले लेगा।

तो श्रीमान, अगली बार किसी कार्यक्रम में जाएं, किसी मीटिंग में पहुंचें या किसी शादी में शामिल हों- तो ध्यान रखिए,“समय पर पहुंचना केवल आदत नहीं, दूसरों के जीवन और सम्मान की कदर करना है।”

वरना… कहीं ऐसा न हो कि लोग आपको भी मिठाई खिलाकर “लेट होने का ब्रांड एंबेसडर” बना दें।

महेश सोनी
(राज्यपाल पुरस्कार प्राप्त शिक्षक एवं स्वच्छता ब्रांड एंबेसडर नगर निगम) प्रधानाध्यापक, शासकीय माध्यमिक विद्यालय महाकाल कॉलोनी, देवास

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