खेत-खलियान

रबी सीजन में अश्वगंधा बना किसानों की कमाई का मजबूत विकल्प

Share

 

कम पानी, कम लागत और शानदार मुनाफा, किसानों ने बदली खेती की तस्वीर

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। जहां एक ओर रबी मौसम में किसान परंपरागत रूप से गेहूं, चना और रायड़ा की खेती पर निर्भर रहते हैं, वहीं बेहरी क्षेत्र के कुछ जागरूक किसान अब औषधीय फसल अश्वगंधा की खेती कर कम लागत में बड़ा मुनाफा कमा रहे हैं। सीमित सिंचाई, कम मेहनत और बेहतर बाजार भाव के कारण अश्वगंधा किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है।

बेहरी क्षेत्र में कृषक विजेंद्रसिंह रावत, चंदन सिंह राठौड़, संतोष बाछानिया, चैन सिंह और नरसिंह दौलत कर्मा पिछले कुछ वर्षों से लगातार अश्वगंधा की खेती कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि लगभग 120 से 150 दिन में तैयार होने वाली यह फसल कम पानी और शीत लहर में भी अच्छा उत्पादन देती है।
जहां गेहूं और सब्जियों के लिए अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है, वहीं अश्वगंधा सिर्फ दो सिंचाई में तैयार हो जाती है।

खर्च कम, मुनाफा ज्यादा-
किसानों के अनुसार एक बीघा में औसतन 3 क्विंटल उत्पादन हुआ। पिछले वर्ष 32 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक भाव मिला। बीज लागत 450 प्रति किलो से 4 किलो 1,800 रुपए।मजदूरी व अन्य खर्च लगभग 3 हजार रुपए। इस तरह एक बीघा में कुल खर्च बेहद सीमित रहा, जबकि आमदनी हजारों में।

किसान विजेंद्र सिंह रावत ने बताया कि उन्होंने पिछले साल 2 बीघा में अश्वगंधा की खेती की थी, जिससे खर्च निकालने के बाद करीब 1 लाख 75 हजार रुपए का शुद्ध लाभ हुआ। इसके अलावा जड़ अलग करने के बाद बचे पत्तों को मशीन से बारीक कर 10 रुपए प्रति किलो तक बेचा गया, जिससे अतिरिक्त आय भी मिली।

कीट प्रकोप कम होता है-
इस विषय में कृषि विज्ञान केंद्र, आगर के कृषि वैज्ञानिक अशोक कुमार दीक्षित ने बताया कि
अश्वगंधा की खेती से न सिर्फ किसान की आमदनी बढ़ती है, बल्कि जमीन की उर्वरक क्षमता भी बेहतर होती है।

वहीं मृदा विशेषज्ञ डॉ. सविता सिंह के अनुसार अश्वगंधा के लिए हल्की भूरी मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। इस फसल में कीट प्रकोप बहुत कम होता है, इसलिए यह उन किसानों के लिए आदर्श है जिनके पास सिंचाई के साधन सीमित हैं।

जड़, पत्ते और बीज सबकी है बाजार में मांग-
अश्वगंधा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी जड़, पत्ते और बीज तीनों की बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। किसानों से कच्चा माल खरीदकर औषधि कंपनियां इसका प्रसंस्करण करती हैं और इससे बनने वाली आयुर्वेदिक दवाएं बाजार में महंगे दामों पर बिकती हैं।

औषधीय महत्व से बढ़ी मांग-
अश्वगंधा का उपयोग आयुर्वेद में कमजोरी, तनाव, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और कई अन्य बीमारियों के उपचार में किया जाता है। बढ़ती स्वास्थ्य जागरूकता के चलते इसकी मांग लगातार बढ़ रही है, जिसका सीधा फायदा किसानों को मिल रहा है।

Related Articles

Back to top button