साहित्य

अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में गूंजे ओज, प्रेम और हास्य के सुर

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– साहित्य में वह शक्ति है, जो समाज के सोचने का ढंग बदल सकती है- पी. नरहरि

देवास। शहर की सांस्कृतिक धरती शुक्रवार की शाम साहित्य के सुरों से ऐसी महकी कि मल्हार स्मृति मंदिर एक भव्य काव्य महोत्सव का रूप ले उठा। कलाव्योम फाउंडेशन के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में देशभर से आए प्रख्यात कवियों ने ऐसी काव्य-वृष्टि की कि श्रोता देर तक तालियों की गड़गड़ाहट करते रहे।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, वरिष्ठ आईएएस एवं मध्यप्रदेश शासन के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रमुख सचिव पी. नरहरि ने अपने प्रेरक संबोधन में कहा कि साहित्यिक आयोजन किसी भी शहर की सांस्कृतिक धड़कन को जीवंत रखते हैं और समाज को सोच की नई दिशा प्रदान करते हैं।

उन्होंने स्वच्छता अभियान के लोकप्रिय गीत “हो हल्ला” की रचना की प्रेरणा साझा करते हुए बताया कि साहित्य में वह शक्ति है, जो समाज के सोचने का ढंग बदल सकती है। उन्होंने कहा कविता वह आवाज़ है, जो मनुष्य के भीतरीतम भावों को स्वर देती है और समाज की आत्मा को अभिव्यक्ति प्रदान करती है।

कार्यक्रम की अध्यक्ष अरुणा सोनी ने कहा कि देवास में साहित्यिक गतिविधियां निरंतर होती रहती हैं, परंतु यह पहला आयोजन था जिसने शहर के प्रमुख प्रबुद्धजनों को एक ही मंच पर बड़ी संख्या में एकत्र किया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह कवि सम्मेलन शहर की सांस्कृतिक ऊर्जा को और अधिक सशक्त करेगा।

वीर रस, भक्ति और ओज का अद्भुत संगम-
कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय वीर रस कवि राकेश दांगी ने किया। उन्होंने जैसे ही मां चामुंडा का आह्वान करती अपनी ओजस्वी पंक्तियां “शारदे सरस्वती काली कल्याणी तू है, कर कल्याण मेरी लेखनी सुधार दे…, चामुंडा रानी मेरा जीवन संवार दे।” पढ़ीं, सभागार भक्ति और उर्जा से गूंज उठा।

प्रेम, राष्ट्रभक्ति और संवेदना की अनोखी छटा-
कवियित्री प्रीति पांडेय ने अपनी भावपूर्ण पंक्तियां “हार कर भी जीत में जीवित रहेंगे, सांस बनकर प्रीत में जीवित रहेंगे…” सुना कर उपस्थित श्रोताओं के हृदय में प्रेम और सकारात्मकता की नई लहर जगा दी।

देवास के ओज कवि देवकृष्ण व्यास ने राष्ट्रभाव से परिपूर्ण पंक्तियां “रुको अभी लिखो नहीं इतिहास के लिए, एक पृष्ठ छोड़ दो सुभाष के लिए।” पढ़कर सभागार में देशभक्ति का जोश भर दिया।

हंसी का तूफान के बीच भावनाओं की संवेदना-
हास्य-व्यंग्य कवि जानी बैरागी ने अपनी चुटीली रचनाओं से श्रोताओं को ठहाकों से लोटपोट कर दिया। वहीं, परिवार और संस्कारों की संवेदना से ओत-प्रोत उनकी पंक्तियां- “जिस दिन घर से बाहर बिटिया का पांव चला गया, उसी दिन अपने दादाजी की मूंछ का ताव चला गया…” ने भावनात्मक वातावरण भी रच दिया।

कवि सम्मेलन में पद्मश्री से सम्मानित कालूराम बामनिया, समाजसेवी राधेश्याम सोनी, अनेक प्रशासनिक अधिकारी, कलाव्योम फाउंडेशन के अध्यक्ष अशोक श्रीमाल, शहर के साहित्यप्रेमी एवं प्रबुद्धजन बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। आभार फाउंडेशन की सचिव अपर्णा भोसले ने व्यक्त किया।

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