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    प्राकृतिक कठिनाइयों के बीच मजदूरों की मेहनत रंग लाई

    ByNews Desk

    May 24, 2025
    तेंदूपत्ता
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    बेहरी तेंदूपत्ता समिति ने चार दिन में ही पूरा किया लक्ष्य

    बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। मध्यप्रदेश के देवास जिले के बागली उपवन परिक्षेत्र की बेहरी तेंदूपत्ता समिति ने इस वर्ष असाधारण प्रदर्शन करते हुए मात्र चार दिन में ही तेंदूपत्ता संग्रहण का निर्धारित लक्ष्य पार कर लिया।

    18 मई से शुरू हुए इस अभियान में समिति से जुड़े 1300 श्रमिक परिवारों को 1250 मानक बोरे तेंदूपत्ता तोड़ने का लक्ष्य दिया गया था, जिसे मात्र चार दिनों में ही पार करते हुए 1475 बोरे इकट्ठा कर डाले, जो कुल लक्ष्य का लगभग 120 प्रतिशत है।

    प्रकृति की गोद में आठ दिन की प्रक्रिया-
    समिति प्रबंधक संतोष परमार के अनुसार, पत्तों को श्रमिकों से एकत्र कर गड्डियों के रूप में खुले आसमान के नीचे सूखने के लिए रखा गया है। फड़ मुंशी और चौकीदारों की निगरानी में यह पत्ते तीन-तीन दिन के अंतराल में उलटे-पलटे जा रहे हैं, ताकि वे अच्छी तरह सूख सकें। लगभग आठ दिनों की इस प्रक्रिया के बाद, पत्तों को बरझाई स्थित भंडार गृह में सुरक्षित रखा जाएगा।

    24 हजार बोरे तेंदूपत्ता संग्रहण का लक्ष्य-
    बागली उपवन परिक्षेत्र में कुल 10 प्रबंधन समितियां कार्यरत हैं। इन समितियों के अंतर्गत लगभग 200 फड़ कार्यरत हैं, जिनके माध्यम से कुल 24 हजार मानक बोरे तेंदूपत्ता संग्रहित किए जाने का अनुमान है।

    मार्च में ही तय हो जाते हैं भाव और मजदूरी-
    मध्यप्रदेश सरकार द्वारा तेंदूपत्ता खरीदी के टेंडर मार्च माह में ही पूर्ण कर लिए जाते हैं, जिससे संबंधित क्षेत्रों को पत्ता तोड़ने का लक्ष्य ठेकेदार की मांग के अनुसार सौंपा जाता है। इस वर्ष 400 रुपये प्रति मानक बोरे की दर तय की गई है, जिससे यह स्पष्ट है कि बीड़ी उद्योग में कीमतों में इजाफा संभावित है। संग्रहण के बाद मजदूरों को निर्धारित मजदूरी के साथ बोनस राशि भी दी जाती है।

    देवास के पत्तों की सबसे ऊंची बोली-
    मध्यप्रदेश के 12 जिलों में तेंदूपत्ता संग्रहण होता है, लेकिन देवास जिले के पत्तों की सबसे ऊंची बोली लगती है। इसका मुख्य कारण यह है कि यहां के पत्ते न केवल गुणवत्ता में सर्वोत्तम होते हैं, बल्कि संग्रहण प्रक्रिया में भी सतर्कता बरती जाती है।

    प्राकृतिक आपदा में भी मजदूरों को नुकसान नहीं-
    हालांकि पत्ते खुले आसमान के नीचे सुखाए जाते हैं, जिससे बारिश या ओलावृष्टि की स्थिति में इनके खराब होने का खतरा बना रहता है। फिर भी ठेकेदार खराब पत्तों को भी खरीदते हैं, जिससे मजदूरों को नुकसान न हो और उन्हें समय पर बोनस भी मिल सके।

    अनूठा प्राकृतिक चमत्कार: हरे से खाकी रंग तक का सफर-
    वन समिति अध्यक्ष रामसिंह ओसारी ने बताया, कि तेंदूपत्ता एक अनोखा पत्ता है। शुरुआत में यह हरे रंग का होता है, सूखते-सूखते लाल और फिर बीड़ी बनाने के समय खाकी रंग का हो जाता है। यह पत्ता न केवल स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है बल्कि इसकी जलने की क्षमता भी बेहतरीन होती है। यही वजह है कि बीड़ी निर्माण में इसका कोई विकल्प नहीं है।

    अलग-अलग राज्यों में अलग नामों से जाना जाता है तेंदूपत्ता- 
    देश के विभिन्न राज्यों में इस पत्ते को अलग-अलग नामों से जाना जाता है—आंध्र प्रदेश में “अबनुस”, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में “केंदु”, गुजरात में “टेम्ब्रू”, केरल में “कारी”, महाराष्ट्र में “टेम्भुर्नी” और “बाली”, तमिलनाडु में “तुपरा”, और मध्यप्रदेश में “तेंदूपत्ता” या आम बोलचाल में “टेमरु पत्ता”। आज भी कई आदिवासी परिवार इन पत्तों से घर पर ही बीड़ी बनाते हैं, जिससे यह न केवल आजीविका का माध्यम है बल्कि सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी बन चुका है।