आपका शहरराजनीति

कांग्रेस में टिकट वितरण के साथ ही लिख दी गई थी हार की पटकथा!

– एकजुटता के जो दावे किए जा रहे थे, वे 45 हजार से अधिक मतों की पराजय के साथ ही हुए ध्वस्त

– सोशल मीडिया में कांग्रेस की हार को लेकर जारी है चर्चा का दौर, प्रत्याशी के चयन पर भी हुए सवाल

देवास। नगर निगम चुनाव में कांंग्रेस की करारी शिकस्त से सोशल मीडिया सहित कांग्रेस कार्यकर्ताओं में चर्चा का दौर शुरू हो गया है। आखिर वे कौन से कारण रहे, जिससे कांग्रेस को महापौर पद में अब तक की सबसे बड़ी पराजय झेलना पड़ी। इस हार पर सवाल उठना लाजमी भी है। खंड-खंड में विभक्त कांग्रेस की एकजुटता के जो दावे मतदान से पहले किए जा रहे थे, वे इस 45 हजार से अधिक मतों से पराजय के साथ ही ध्वस्त हो गए। महापौर प्रत्याशी विनोदिनी व्यास शुरुआत से लेकर मतदान के पूर्व तक अलग-थलग होकर प्रचार में जुटी रही। कांग्रेस को वार्डों में भी बूथ स्तर पर कार्यकर्ता खोजने में पसीना आ गया।

कांग्रेस की पराजय की पटकथा तो टिकट वितरण के साथ ही लिखी जा चुकी थी। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनी ओर से सामाजिक कार्यकर्ता व युवा नेता प्रवेश अग्रवाल की धर्मपत्नी श्वेता अग्रवाल के नाम पर मोहर लगा दी थी। उनके नाम की चर्चा जैसे ही सोशल मीडिया सहित समाचार चैनलों पर चली, वैसे ही स्थानीय कई कांग्रेसी विरोध में उतर आए। उनका विरोध इस कदर हावी रहा कि ऐनवक्त पर कमलनाथ को नाम में बदलाव करना पड़ा और यही कांग्रेस की इस महापराजय का सबसे बड़ा कारण रहा। विनोदिनी रमेश व्यास का नाम तो फाइनल कर दिया गया, लेकिन उनका साथ कद्दावर नेताओं ने भी नहीं दिया। उनके जनसंपर्क से वरिष्ठ नेताओं ने दूरी बनाए रखी। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो अगर श्वेता अग्रवाल को कांग्रेस टिकट दे देती तो कांग्रेस की इतनी दुर्गति नहीं होती। उनके पति प्रवेश अग्रवाल नर्मदे युवा सेना के नाम से संगठन संचालित करते हैं और उनके पास हजारों की संख्या में सक्रिय कार्यकर्ताओं की फौज है। देवास में वर्षों से सामाजिक व धार्मिक गतिविधियों का संचालन करते आ रहे हैं। उनके संगठन में महिलाओं की संख्या भी 5 हजार से अधिक है। अगर उन्हें टिकट मिलता तो नर्मदे युवा सेना की पूरी फौज सक्रियता से चुनाव जीतने के लिए कार्य करती। प्रवेश अग्रवाल चूंकि कमलनाथ के करीबी है, इसके चलते कद्दावर नेताओं को भी सक्रियता से चुनाव जीताने के लिए कार्य करना पड़ता। अग्रवाल का शुरुआती विरोध जरूर कांग्रेस के नेताओं ने किया था, लेकिन कमलनाथ के करीबी होने से उन्हें अग्रवाल की जीत के लिए पूरी ताकत से चुनाव मैदान में उतरना पड़ता। इधर सामाजिक द्ष्टकिोण से भी अग्रवाल का टिकट में पलड़ा भारी बैठ रहा था। ब्राह्मण व मुस्लिम वोटरों ने भी कांग्रेस का पूरी तरह से साथ नहीं दिया।

प्रवेश अग्रवाल की छवि हिंदूवादी नेता के रूप में है और इसका उन्हें चुनाव में फायदा मिलता। कांग्रेस को परंपरागत वोटरों के अलावा अन्य वर्गों के वोट भी प्राप्त होते। कुल मिलाकर भाजपा से मुकाबला बराबरी का होता। रेखा वर्मा के महापौर बनने के बाद से दोनों ही चुनावों में कांग्रेस के हाथ से महापौर का पद फिसलता चला गया। इस बार उम्मीद जरूर बन रही थी, लेकिन प्रत्याशी के चयन में गफलत होने के साथ ही यह उम्मीद धूमिल हो गई।

विनोदिनी व्यास के हारने का एक अन्य कारण यह भी रहा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें अपने हाल पर ही छोड़ दिया था। कांग्रेस के बड़े नेता अपने समर्थक पार्षदों के जीत की अपील तो कर रहे थे, लेकिन महापौर प्रत्याशी के लिए अधिक सक्रियता नहीं दिखा रहे थे। इधर भाजपा की महापौर प्रत्याशी गीता दुर्गेश अग्रवाल को जीताने के लिए भाजपा का पूरा संगठन सक्रिय था। विधायक गायत्री राजे पवार एवं महाराज विक्रमसिंह पवार ने वार्ड-वार्ड घूमकर वोट मांगे। भाजपा का बूथ एवं मीडिया मैनेजमेंट भी काफी जबरदस्त रहा। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी चल रही है कि कांग्रेस के कुछ नेता यह नहीं चाहते थे कि महापौर प्रत्याशी जीत जाए, अगर वह जीतता है तो उसका कद बढ़ जाता। रही सही कसर कांग्रेस में निर्दलीय प्रत्याशियों ने पूरी कर दी। इन्होंने कांग्रेस के काफी वोट काटकर कांग्रेस प्रत्याशी के हार का अंतर काफी बड़ा दिया। देवास में कांग्रेस के बारे में कहा जाता है कि यहां कांग्रेस को कांग्रेसी ही हराते हैं और इस चुनाव में यह कहावत एक बार फिर से चरितार्थ हुई। सबसे बड़ी बात तो यह रही कि अब तक इस महा पराजय की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली। सोशल मीडिया पर कार्यकर्ताओं ने शहर अध्यक्ष पर ही सवाल उठाए हैं और नैतिकता के आधार पर इस्तीफे की मांग तक कर डाली। यह भी लिखा कि 2023 में देवास विधानसभा में 50 हजार वोटों से कांग्रेस हारेगी।

Advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button