धर्म-अध्यात्म

संत के आने से खुशी तो डाकू के आने से दुख मिलता है- सद्गुरु मंगल नाम साहेब

देवास। एक सह्रदय संत सबके सुख-सुविधाओं की बात पूछता है। संत ऐसे व्यक्ति, परिवार को दुखों को संभालने की सामर्थ्य दे देता है, लेकिन एक दुष्ट आता है तो सबकी सुविधाओं को छीन ले जाता है।

यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने बालगढ़ में आयोजित चौका विधान, चौका आरती, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। उन्होंने कहा लोग डाकुओं को, दुष्टों को देखकर दरवाजा बंद कर लेते हैं, क्योंकि वह अपना सब कुछ छीनकर ले जाता है। संत के आने से सुख बरसता है। सुविधाएं, सुमति और शांति आती है। संत के संवाद से जिंदगी के पक्षधर खुल जाते हैं। डाकू सारे जीवन की अच्छाई जो संपदा जिसे हम आर्थिक स्थिति कहते हैं, छीनकर ले जाता है।

उन्होंने कहा डाकू अपने सुख के लिए कितनी माता-बहनों को विधवा कर बच्चों को अनाथ कर जाते हैं। इसलिए संत और डाकू में एक ही अंतर है कि एक के आने से सुख, खुशी की बहार आ जाती है तो एक के जाने से खुशी होती है। संत इस सांसारिक जगत में सुमति, शांति, सत्य का सहज ही अनुभव करा देते हैं।
उन्होंने आगे कहा जो मानव जीवन के झूठे स्वाद की तरफ भागने लगते हैं, उसे होश आ जाता है फिर वह परमात्मा को, उस सत्य स्वरूप को चाहे कितना भी कष्ट मिले वह प्राप्त कर लेता है। वह कष्ट को भी खुशी-खुशी झेल लेता है। संत से अनंत जन्मों की सुख-सुविधाएं उपलब्ध हो जाती है।

उन्होंने कहा परमात्मा किसी स्वरूप में नहीं बसता, न किसी विचार में बसता है। महल बना लिया, शादी कर ली पर शांति नहीं मिलती। लेकिन संतों के विचारों से राजपाठ, महल सब छोड़कर लोग चले जाते हैं। संतों के सानिध्य में हर परिस्थिति का सामना करने की क्षमता जागृत हो जाती है।

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