धर्म-अध्यात्म

प्रभु श्रीराम प्रेम सौहार्द और वात्सल्य के परमधाम हैं- स्वामी रामनारायण महाराज

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देवास। प्रभु श्रीराम की महिमा अपरंपार है, जिनका प्राणी मात्र, मानव-दानव, पशु-पक्षी सब पर एक आत्मीयत, अभ्यत्व और वात्सल्य का भाव समाया हुआ है। प्रभु श्रीराम प्रेम, सौहार्द और वात्सल्य के परमधाम हैं।

जैसे रामायण में सुग्रीव पर, भीलनी पर, काग भूसुंडी पर कृपा की। प्रभु श्रीराम कहते हैं कि सारे संसार को अपने में मानता हूं। सारे संसार में व्याप्त जीव चराचर में मैं ही विद्यमान हूं।

यह विचार श्रीराम द्वारा के महंत स्वामी रामनारायणजी ने बालगढ़ निवासी भक्त रमेश पटेल को श्रीराम दरबार की तस्वीर भेंट करने के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि इस प्रकार से जैसे रामजी प्राणीमात्र के अंदर एक भाव मानते हैं, इसी प्रकार प्रत्येक प्राणी भाईचारा, बंधुत्व, प्रेम, सौहार्द के साथ निरंतर राष्ट्र निर्माण में ओतप्रोत रहना चाहिए। यही रामजी का सौहार्द और यही रामायण-महाभारत और गीता का सार है। यह स्वामी रामचरणजी महाराज ने अपनी अमृत वाणी में में भी अनुभव व्यक्त किए हैं। प्रभु श्रीराम ने मानव को उपदेश देते हुए मानवता का पाठ पढ़ाया हैं। आगे कहा कि वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी के बाद आज हम स्वतंत्र हैं। आज भी हम अपनी धार्मिक संस्कृति और परंपराओं को कायम रखे हुए हैं।

इस अवसर पर संत श्रीराम सुमिरनजी, संत माणकराम निंबाहेड़ा, पुनीत रामजी महाराज, प्रो. सीमा सोनी, महेश सोनी सहित धर्मप्रेमी उपस्थित थे।

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