देवास। इस संसार में समस्त झगड़ों की जड़ सीमाएं हैं। जब तक सीमाएं हैं, तब तक संघर्ष है। किंतु जब हम असीम की ओर बढ़ते हैं, तो समस्त विवाद स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं।
सद्गुरु मंगलनाम साहेब ने सद्गुरु कबीर प्रार्थना स्थली सेवा समिति, मंगल मार्ग टेकरी पर आयोजित गुरु-शिष्य चर्चा एवं गुरुवाणी पाठ में यह गहन आध्यात्मिक विचार व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि जीव का वास्तविक स्वरूप अविचल, अविगत और असीम है। वह गति में नहीं आता, क्योंकि वह नाभि-कमल से उत्पन्न हुआ है। कबीर साहब भी यही कहते हैं कि वे आकाश से नहीं, बल्कि गगन मंडल से उतरे हैं। यह जीवन कोरे कागज के समान है, जिस पर कोई सांसारिक रंग नहीं चढ़ा। परंतु मनुष्य स्वयं को मोह-माया, लोभ-लालच और सांसारिक इच्छाओं के रंग में रंग लेता है, जो एक दिन मिट जाते हैं। अतः ऐसे रंग में रंगो जो कभी न मिटे, जो स्थायी हो, जो असीम हो।
सीमाओं का भ्रम और असीम की खोज-
सद्गुरु ने आगे कहा कि झगड़ा केवल सीमाओं का है। विचारधाराओं की भूलभुलैया में उलझा मनुष्य सीमाओं को ही सत्य मान बैठा है। किंतु जब हम असीम की ओर बढ़ते हैं, तो यह सभी बंधन समाप्त हो जाते हैं। कबीर साहब ने भी गुण और अवगुणों से मुक्त होकर ही अपनी बात कही, निर्बैर होकर।
निर्बैर और निर्मोही होना तभी संभव है जब हम संसार में रहते हुए भी संसार को अपने भीतर न बसाएं। किन्तु यह अवस्था सहज नहीं है। यह तभी प्राप्त होती है जब व्यक्ति समस्त योग्यताओं, अयोग्यताओं, गुणों और अवगुणों को जान ले और उनसे परे हो जाए।
सीमांकन का मोह और असीम का आनंद-
सद्गुरु ने कहा कि संसार में हर झगड़ा सीमांकन का है। जब तक सीमांकन करोगे, तुम बंधनों में ही उलझे रहोगे। कब तक सीमाओं को मापोगे? एक दिन तुम स्वयं इस पागलपन से मुक्त होना चाहोगे। इसलिए असीम की ओर लौटो, उस परम तत्व की ओर बढ़ो, जिसकी कोई सीमा नहीं, जो अनंत है, जिसे नापा नहीं जा सकता।
इस असीम तक पहुंचने का मार्ग सद्गुरु की शरण और उनकी वाणी के चिंतन में है। सद्गुरु के मार्गदर्शन में ही हम गुण-अवगुणों से मुक्त हो सकते हैं और सच्चे अर्थों में निर्बैर हो सकते हैं।
स्वागत किया-
इस पावन अवसर पर साध संगत के श्रद्धालु मनोज हिनोरे, मांगीलाल साहब, इंदिरा साहब, जीवा साहब, श्रीनाथ होनोरे सहित अनेक भक्तों ने सद्गुरु मंगलनाम साहेब का पुष्प-मालाओं से भव्य स्वागत किया। इस आयोजन की जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने प्रदान की।
मुख्य बिंदु:
सीमाओं से बंधा मनुष्य ही झगड़ों का कारण बनता है।
सत्य स्वरूप असीम और अनंत है, जो किसी सीमा में नहीं बंधता।
संसारिक रंग मोह, माया और लालच का है, जो एक दिन मिट जाता है।
सद्गुरु की शरण में जाकर ही गुण-अवगुणों से मुक्त होकर निर्बैर और निर्मोही हुआ जा सकता है।
सीमांकन करने से संघर्ष बढ़ता है, असीम को अपनाने से शांति मिलती है।
गुरुवाणी और सत्संग के माध्यम से आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।