क्राइमदेवास

लोकायुक्त पुलिस ने उद्यानिकी विभाग में आकर जब्त किए मूल रिकॉर्ड

मामला वर्ष 2013 से 15 के मध्य ड्रिप संंयंत्र योजना में घपले का

एक ही खसरे पर दोबारा दे दिया था योजना का लाभ, दर्ज हुए थे 15 प्रकरण

देवास। ड्रिप संंयंत्र योजना अंतर्गत देवास जिले में बड़ा घपला हुआ था। नियम विरूद्ध कुछ हितग्राहियों को दोबारा फायदा पहुंचाने के मामले में लोकायुक्त तक शिकायत पहुंची और प्रकरण दर्ज हुए थे। मामले में लोकायुक्त पुलिस की जांच अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। देवास जिले में यह घपला वर्ष 2013 से 2015 के मध्य हुआ था। सोमवार को उज्जैन लोकायुक्त पुलिस ने उद्यानिकी विभाग में आकर अहम दस्तावेजों को जब्त किया।

गौरतलब है कि ड्रिप इरिगेशन योजना अंतर्गत किसानों को शासन द्वारा सब्सिडी का लाभ दिया जाता है। यह लाभ एक बार ही मिलता है, लेकिन यहां नियम के विपरीत कार्य हुआ। योजना अंतर्गत वर्ष 2013-14 एवं 2014-15 में कई किसानों को ड्रिप संयंत्र दिए गए थे। इनमें टोंकखुर्द, कन्नौद, देवास में कुछ हितग्राहियों को एक ही खसरे पर इस संंयंत्र का लाभ दूसरे वर्ष भी दे दिया गया। जबकि योजना में नियम था कि पांच हेक्टेयर तक अलग-अलग वर्ग के हिसाब से सब्सिडी दी जाती है और 10 वर्ष के अंतराल में ही हितग्राही फायदा ले सकता है, लेकिन तत्कालीन अधिकारियों ने 15 हितग्राहियों को वर्ष 2013-14 में पहले और वर्ष 2014-15 में दूसरी बार इसी योजना में उसी खसरे पर लाभ दे दिया। शिकायत के बाद लोकायुक्त में 15 प्रकरण दर्ज हुए थे। इसकी जांच लोकायुक्त पुलिस कर रही है। जांच के लिए लोकायुक्त पुलिस ने उद्यानिकी विभाग देवास से मूल दस्तावेजों की मांग की थी, लेकिन विभाग ने जब ये दस्तावेज प्रदान नहीं किए तो सोमवार को लोकायुक्त पुलिस टीम को देवास आना पड़ा और यहां से दस्तावेजों को जब्त किया।

मूल रिकॉर्ड जब्त किए हैं-

इस संबंध में लोकायुक्त इंस्पेक्टर राजेंद्र वर्मा का कहना है कि प्रकरणों में विवेचना लगभग पूर्ण हो चुकी है। इससे संंबंधित कुछ मूल रिकॉर्ड उद्यानिकी विभाग से हमें प्राप्त नहीं हुए थे, उसे जब्त करने के लिए मैं अपनी टीम के साथ देवास आया हूं। मामले में शिकायत वर्ष 2015 में हुई थी। प्राथमिक जांच के उपरांत वर्ष 2016 और वर्ष 2017 में कुल 15 प्रकरण दर्ज किए थे। जांच लगभग पूर्ण हो चुकी है।

रिपोर्ट के आधार पर स्वीकृत किए थे प्रकरण-

इधर मामले में तत्कालीन उप संचालक नरेशसिंह तोमर का कहना है कि योजना का लाभ देने के लिए क्षेत्र के अधिकारी खेतों पर जाकर भौतिक सत्यापन करते हैं और इसकी रिपोर्ट बनाकर देते हैं। रिपोर्ट के साथ ही किसान से यह लिखवाया भी जाता है कि उसने पूर्व में योजना का लाभ नहीं लिया है। हमें संबंधित लोकल अधिकारियों ने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, उस आधार पर प्रकरणों की स्वीकृति की थी। चूंकि लोकायुक्त में मामला है तो प्रकरण संबंधी तथ्यात्मक जवाब दे रहे हैं।

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