साहित्य

उचित प्रबंधन से हल होगी डॉग की समस्या

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दिल्ली सहित देश के कई बड़े शहरों में स्ट्रीट डॉग की समस्या लगातार सुर्खियों में बनी हुई है। इसके पक्ष और विपक्ष में ढेरों तर्क सामने आते हैं, लेकिन असल सवाल यह है कि इस समस्या का समाधान किस तरह हो।

डॉग आवारा नहीं, बेघर-
सड़क पर घूमते कुत्तों को अक्सर ‘आवारा’ कह दिया जाता है, लेकिन क्या यह सही है? दरअसल, आधुनिकीकरण ने उनकी प्राकृतिक जगहें और आश्रय छीन लिए हैं। जो कुत्ते कभी मोहल्लों और बस्तियों का हिस्सा थे, अब “बेघर” होकर सड़कों पर भटक रहे हैं। उन्हें “बेघर डॉग” कहना कहीं ज्यादा मानवीय होगा।

समाज और धार्मिक दृष्टिकोण-
भारतीय समाज में कुत्तों को धार्मिक दृष्टि से सम्मान दिया जाता है। त्योहारों और मान्यताओं में उनका उल्लेख भी मिलता है। लेकिन यह सम्मान अक्सर केवल व्हाट्सएप स्टेटस और फेसबुक पोस्ट तक ही सीमित रह जाता है। व्यवहारिक जीवन में लोग अपने परिजनों तक को साथ रखने में संकोच करने लगे हैं, तो फिर किसी डॉग को अपनाने की बात दूर की लगती है।

असल समस्या-
कुत्ता आज भी वही है जो 30 हजार साल पहले था वफादार, सहज और अपने वातावरण के अनुसार ढलने वाला। फर्क आया है तो इंसान के व्यवहार में। स्वार्थी जीवनशैली ने इंसान को संवेदनाओं से दूर कर दिया है। यही असली कारण है कि डॉग समस्या बनते जा रहे हैं।

समाधान: दया और प्रबंधन-
हमें यह समझना होगा कि समस्या का हल समाप्ति नहीं बल्कि प्रबंधन है। जैसे पोलियो के लिए हमने टीका बनाया, न कि मरीजों को खत्म किया। ठीक उसी तरह रेबीज का टीकाकरण और नसबंदी (sterilization) कार्यक्रम ही सबसे कारगर उपाय है।

– मोहल्ला स्तर पर डॉग शेल्टर और फीडिंग ज़ोन बनाए जाएं।

– डॉग कैचिंग स्क्वाड को मानवीय तरीके से प्रशिक्षित किया जाए।

– स्कूलों और समाज में डॉग-अवेयरनेस अभियान चलाए जाएं।

स्ट्रीट डॉग समाज का हिस्सा हैं, उनसे मुंह मोड़कर समस्या खत्म नहीं होगी। अगर इंसान अपना रवैया बदले और उचित प्रबंधन अपनाए, तो यह चुनौती अवसर में बदल सकती है- जहां इंसान और डॉग दोनों सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जी सकें।

Mahesh soni

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