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गुरु पूर्णिमा पर विशेष: चलती-फिरती लाइब्रेरी से गांवों तक पहुंचाई ज्ञान की रोशनी, किताबों वाली दीदी बनीं मिसाल

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गुरु पूर्णिमा पर एक समर्पित शिक्षिका की प्रेरक कहानी, जिसने स्कूटी को बना दिया चलता-फिरता पुस्तकालय और शिक्षा को पहुंचाया हर घर तक। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की उनके कार्यों की सराहना।

भोपाल। गुरु पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा की गहराई और शिक्षा की महत्ता का प्रतीक है। इस अवसर पर मध्यप्रदेश की एक शिक्षिका की कहानी समाज को यह बताती है कि एक शिक्षक न सिर्फ ज्ञान देता है, बल्कि समाज को जागरूकता, संस्कार और बदलाव की दिशा भी दिखा सकता है।

सिंगरौली जिले के शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैढ़न में पदस्थ माध्यमिक शिक्षिका सुश्री ऊषा दुबे ने शिक्षा को सीमित दायरे से बाहर निकालते हुए एक अभिनव प्रयोग किया। उन्होंने अपनी स्कूटी को एक “चलती-फिरती लाइब्रेरी” में तब्दील कर मोहल्लों और गांवों में बच्चों तक किताबें पहुंचानी शुरू की। जहां बच्चे उन्हें स्नेहपूर्वक “किताबों वाली दीदी” कहने लगे।

सुश्री ऊषा बताती हैं कि यह पहल तब शुरू हुई जब स्कूल के कुछ बच्चे ताजे कमल के फूल लेकर उनके पास आए। उन्होंने बच्चों की मासूम भावनाओं को समझते हुए शिक्षा को कक्षा की चारदीवारी से बाहर लाकर सड़कों और गलियों तक ले जाने का निश्चय किया। उनका कहना है, “बच्चों के उत्साह ने मुझे प्रेरणा दी कि मैं कुछ नया करूं।”

यह पहल इतनी प्रभावशाली रही कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में उनकी प्रशंसा की। यह उनके लिए एक गर्व का क्षण था, जिसने उनकी जिम्मेदारी और समर्पण को और मजबूत कर दिया।

इसके बाद सुश्री ऊषा ने बच्चों में स्वच्छता की आदतें विकसित करने के लिए “साबुन बैंक” की शुरुआत की। उन्होंने बताया कि उनके पुस्तकालय से जुड़ने वाले बच्चों ने अपने जन्मदिन पर साबुन दान करना शुरू किया। इससे न सिर्फ पढ़ने की आदतें बढ़ीं, बल्कि स्वच्छता और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना भी बच्चों में पनपी।

सुश्री ऊषा दुबे का यह कार्य इस बात का उदाहरण है कि एक शिक्षक अगर चाहे, तो सिर्फ किताबें ही नहीं, सोच और संस्कार भी गढ़ सकता है। गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर उनका समर्पण, समाज के हर शिक्षक को प्रेरणा देने वाला है।

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