कभी गन्ना देता था तगड़ा उत्पादन और अच्छे दाम, आज पहचान भी सिमटती जा रही
(हीरालाल गोस्वामी)
बेहरी। एक समय था जब बागली-बेहरी क्षेत्र में गन्ना किसानों की पहली पसंद हुआ करता था। इसकी खासियत थी हर बार अधिक उत्पादन, लगातार फसल मिलने का लाभ और बाजार में हमेशा अच्छे भाव। गर्मी के दिनों में गन्ने का रस बेचने वाले व्यापारी आज भी प्रति नग 10 से 20 रुपए तक के दाम खुशी-खुशी देते हैं।
आश्चर्य यह कि इतनी मुनाफे वाली फसल आज क्षेत्र के खेतों से लगभग गायब हो चुकी है। तीन दशक पहले जहां गांव-गांव में गन्ना लहलहाता था, वहीं आज यह फसल खोजने पर भी मुश्किल से मिलती है। बेहरी-बागली क्षेत्र में कभी 30 से अधिक गुड़ बनाने के कारखाने और पांच से अधिक खांडसारी शक्कर मिलें चलती थीं। हर किसान गन्ना अवश्य लगाता था। लेकिन 1990 के दशक में लगातार बिजली कटौती, भारी-भरकम बिल और जनरेटर चलाने का खर्च मिल मालिकों के लिए असहनीय होता गया। धीरे-धीरे गुड़ कारखाने बंद हुए, गन्ना कम हुआ और अंततः शक्कर मिलों के शटर भी स्थायी रूप से गिर गए।
मिल मालिकों ने जमीनें बेचीं, किसान गन्ने से दूर हुए-
जब गन्ना उत्पादन कम होने लगा और बिजली संकट ने हालत बिगाड़े रखी, तब मिल मालिकों ने अपनी जमीनें बड़े खरीदारों को बेच दीं। दूसरी ओर लगातार परेशानियों से जूझते किसान गन्ना जैसी मेहनती फसल को छोड़कर अन्य फसलों की ओर मुड़ने लगे।
अदरक-मटर का दौर भी ज्यादा देर टिक नहीं पाया-
गन्ने के बाद अदरक और मटर ने कुछ वर्षों तक अच्छी आय दी। इन फसलों में मजदूरों की आवश्यकता अधिक थी, जिससे रोजगार भी खूब मिलता था। लेकिन समय बदलता गया। मजदूरों की मजदूरी बढ़ी। बड़ी संख्या में मजदूर शहरों की तरफ चले गए।
गन्ना लगाने वाले किसान उंगलियों पर गिनने लायक-
गर्मी में गन्ने के रस की दुकानों की मांग इतनी अधिक होती है कि व्यापारी ₹10–₹20 प्रति नग तक गन्ना खरीदते हैं और बढ़िया मुनाफा भी कमा लेते हैं। इसके बावजूद बड़ी संख्या में किसान गन्ना लगाने का जोखिम नहीं उठाते। कारण वही उत्पादन का बढ़ता खर्च, सिंचाई में दिक्कत और मजदूरों की भारी कमी।
पहले चरखी चलती थी-
बेहरी के किसान प्रहलाद गिर महाराज बताते हैं, पहले हमारे यहां चरखी चलती थी। लोग गन्ना लेकर आते थे, गुड़ निकलवाते थे। गांव में जैसे उत्सव सा माहौल रहता था। बिजली संकट और बढ़ते खर्च ने सब खत्म कर दिया। वे बताते हैं कि आज ऐसी फसलें लगानी पड़ती हैं जिनमें खर्च ज्यादा, फायदा कम है। इसी वजह से कई किसान अपनी उपजाऊ जमीन बेचकर आधुनिक साधन लेने को मजबूर हुए हैं।
किसान सूरज सिंह पाटीदार का कहना है कि गन्ना इतना दुर्लभ हो गया है कि आने वाली पीढ़ी शायद खेत में खड़े गन्ने को पहचान भी न सके। मटर और अदरक की खेती भी अब बड़े पैमाने पर नहीं हो रही। आलू-लहसुन की फसलों में एक साल फायदा तीन साल घाटा वाली स्थिति किसान को दांव लगाने पर मजबूर कर देती है।
छोटे किसानों की संख्या बढ़ी-
लगातार घाटे, मजदूरों की कमी ने इस क्षेत्र में कृषि का स्वरूप ही बदल दिया है। आज अगर कोई किसान 50 बीघा का है तो उसे बड़ा किसान माना जाता है। बाकी अधिकांश किसान छोटे और सीमांत वर्ग में सिमट चुके हैं। गन्ना आज भी कीमत और मांग दोनों में मजबूत फसल है परंतु लगातार बिजली संकट, बढ़ती लागत और श्रमिकों की कमी ने किसानों को इससे दूर कर दिया है।





