शिक्षा

कहने के लिए सरकारी स्कूल, जो नवाचार हो रहे वे प्राइवेट स्कूलों में भी नहीं

-एडमिशन के लिए लगी है कतार, पर्याप्त कमरे नहीं होने से करना पड़ रहा इंकार

-टीचर को क्या पढ़ाना है, कैसे पढ़ाना है सभी की पहले से होती है प्लानिंग

देवास। सरकारी स्कूल! क्या आपका बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता है, ओह! वहां क्या पढ़ाते होंगे, क्यों भविष्य बर्बाद कर रहे हो। इस तरह के जुमले अक्सर सुनने को मिलते हैं ऐसे पेरेंट्स को जिनका बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता है। लेकिन देवास जिले में अब सरकारी स्कूल अपनी पढ़ाई के उच्च स्तर और तमाम तरह के संसाधनों से प्राइवेट स्कूलों को पछाड़ रहे हैं। एक सरकारी स्कूल ऐसा भी है, जहां एडमिशन के लिए लाइन लग रही है। स्कूल में क्लास लगाने के लिए पर्याप्त कमरे नहीं है। व्यवस्था बनी रहे, इसके लिए चाह कर भी स्कूल प्रबंधन अधिक संख्या में विद्यार्थियों को एडमिशन नहीं दे पा रहा है। स्कूल में अनुभवी ट्रेंड शिक्षक एवं नवीन तकनीक से होने वाली पढ़ाई पेरेंट्स को खासतौर पर आकर्षित कर रही है।

हम चर्चा कर रहे हैं, देवास शहर से लगभग 5 किमी दूर उज्जैन रोड पर स्थित सिंगावदा के शासकीय हायर सेकंडरी स्कूल की। इन दिनों यहां एडमिशन की प्रक्रिया चल रही है और इतने अधिक आवेदन आ रहे हैं कि स्कूल प्रबंधन को इंकार करना पड़ रहा है। करीब 7 एकड़ में फैले इस स्कूल में 17 कमरे हैं। इनमें स्टॉफ रूम, प्रिसिंपल रूम, कम्प्यूटर कक्ष, विज्ञान प्रयोगशाला, कृषि प्रयोगशाला से लेकर सभी कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है। नियमानुसार एक क्लास में 40 से अधिक विद्यार्थी नहीं होना चाहिए, लेकिन मजबूरी में यहां पर सभी कक्षाओं में 50 से अधिक विद्यार्थी होते हैं। स्कूल ने दो-तीन सालों में पढ़ाई में जबरदस्त तरीके से सुधार किया है, जिसे देखते हुए यहां 20 से 25 किमी दूर रहने वाले विद्यार्थी भी एडमिशन के लिए आ रहे हैं। गत वर्ष 648 विद्यार्थी थे, इस बार 600 से अधिक आवेदन जमा हो चुके हैं। नए एडमिशन लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या भी 150 से अधिक पहुंंच गई है।

कमजोर बच्चों पर विशेष फोकस-

कहने के लिए यह सरकारी स्कूल है, लेकिन जो नवाचार हो रहे हैं, वे प्राइवेट स्कूलों में भी नजर नहीं आते। क्लास में शिक्षक को क्या पढ़ाना है, कैसे पढ़ाना है, किस प्रकार के संसाधनों का उपयोग करना है इसकी प्लानिंग क्लास में जाने से पूर्व ही कर ली जाती है। बकायदा इसे डायरी में नोट किया जाता है और शाम को डायरी में यह सबकुछ उल्लेख करना पड़ता है कि क्लास में शिक्षक ने किस प्रकार से विद्यार्थियों को पढ़ाया। स्कूल प्रबंधन ने इसके लिए शिक्षक डायरी बनाई है, उसमें शिक्षक का परिचय, वेतन, ट्रेनिंग सहित अन्य जानकारी का उल्लेख है। साथ ही क्लास में कमजोर व होशियार विद्यार्थियों की जानकारी के लिए अलग से कॉलम दिया हुआ है। इनमें प्रत्येक विद्यार्थी का नाम और उसकी पढ़ाई में विशेषता का उल्लेख करना होता है। मासिक टेस्ट के अंकों की जानकारी और इस आधार पर आगे किस प्रकार से पढ़ाना है, उसका उल्लेख भी शिक्षक को डायरी में करना होता है। स्कूल में पेरेंट्स से घोषणा पत्र भी भरवाया जाता है। इसमें स्कूल के अनुशासन का पालन करने संबंधी नियम है। स्कूल में फीस की प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन है। यहां पेरेंट्स से नगद फीस नहीं ली जाती, उन्हें ऑनलाइन संस्था के अकाउंट में जमा करना होती है।

करवाएंगे कॉम्पिटिशन एक्जाम की तैयारी-

स्कूल में अधिकतर ग्रामीण परिवेश वाले विद्यार्थी आते हैं। ये विद्यार्थी योग्यता के बल पर सरकारी नौकरी हासिल करने का सपना देखते हैं। ऐसे विद्यार्थियों के लिए स्कूल प्रबंधन ने योजना बनाई है। आगामी कुछ महीनों में यहां कॉम्पिटिशन एक्जाम की तैयारी के लिए क्लास प्रारंभ की जाएगी। इस निशुल्क क्लास में विद्यार्थियों को प्रशिक्षित टीचर तैयारी करवाएंगे। साथ ही एनसीसी की क्लास भी प्रारंभ की जाएगी। स्कूल के मैदान में रनिंग ट्रैक बनाने पर भी विचार चल रहा है। सेना में जाने के लिए तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को इससे बहुत मदद मिलेगी।

शिक्षा सत्र की शुरुआत से ही प्रयास-

स्कूल के प्राचार्य अनिल सोलंकी स्वयं शिक्षा विभाग में लंबा अनुभव रखते हैं। वे कहते हैं हमारे यहां आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे अधिक हैं। विद्यालय का परीक्षा परिणाम सुधारने के लिए हमारे यहां के शिक्षक शिक्षा सत्र की शुरुआत से ही प्रयास करते हैं। हमारे यहां कक्षाएं निर्धारित समय पर संचालित होती है और सभी में बच्चों की उपस्थिति भी होती है। इसमें माता-पिता का सहयोग भी मिलता है, जो अपने बच्चों को नियमित रूप से स्कूल पहुंचाते हैं। आगामी दिनों के लिए हमने प्लानिंग की है, जो निश्चित तौर पर विद्यार्थियों के करियर को सही दिशा में सहयोगी होगी।

विज्ञान सहायक शिक्षक बसंत व्यास का कहना है विज्ञान व गणित ऐसे सब्जेक्ट हैं, जिनमें विद्यार्थियों को कठिनाई महसूस होती है। इनमें रटने जैसा कुछ नहीं है। हम आसान मैथेड से बच्चों में सबजेक्ट की जटिलताओं को दूर करते हैं। इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं।

 

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