कर्म के अंधकार में 84 लाख योनियों में भटक रहा है मानव- सद्गुरु मंगलनाम साहेब

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देवास। कबीर काया समुंद्र है, भेद ना जाने कोई, एक बूंद में सकल समाना। धरती, आसमान, बाग- बगीचे, पवन सारी चीजें इस काया रूपी समुंद्र में, एक बूंद में समाई हुई है। सद्गुरु मंगलनाम साहेब ने माघ पूर्णिमा अवसर पर सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थली मंगल मार्ग टेकरी पर आयोजित गुरु-शिष्य संवाद, चौका आरती में ये विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि, पहले शरीर रूपी प्राण पुरुष का मंदिर बना, फिर प्राण पुरुष सुरगुरु आया। जीव नहीं बना, क्योंकि जीव तो विदेही है, जिसकी देह नहीं है। हवा में भी शिवलिंग ही तैयार हो रहा है। सारा खेल भावनाओं पर है।अगर आपकी भावना सही है तो किसी बर्तन में भरकर पानी को फ्रिज में रख दो। उसमें भी शिवलिंग की आकृति उभर आती है। जैसा आपने विचार किया वैसी ही आकृति बन जाती है। उन्होंने कहा, कि यह शरीर के आकार का प्रथम चरण है। इस वायु के अंदर वही बिंदु तैर रहे हैं। नाद बिंदु दोई करता आया, जम को जीता लोक पटाया। नाद शब्द है, जो आवाज है, शब्द से आवाज, फिर आकाश बना। आकाश से फिर शरीर बना। शरीर के अंदर फिर पांचों तत्व की गतिविधियों का निर्माण हुआ और शरीर श्वास के साथ फिर बहने लगा। पांच तत्व गुण तीन का बना है शरीर। इसलिए इसे अष्टांगी कहते हैं। अष्टांगी मां हुई जो शरीर का निर्माण करती है और अष्टांगी ही बाप हुआ जो शरीर का निर्माण करता है। नर और नारी दोनों अष्टांगी है। अष्ट अंग का नर है और अष्ट अंग की नारी। ऐसे शरीर को दिया विचारी।।फिर जैसी भावना जिसकी रही, वैसा उसके घर पुत्र-पुत्री का जन्म हुआ। यह चिंतन का कर्म का परिणाम है और पुत्र-पुत्री बनकर जन्म ले लिया है। उसी को हम भूले हैं, समझे हैं कि हमें नहीं मालूम कि हमारा ही किया हुआ अंधेरा हमारे सामने। हम पूर्ण प्रकाशी हैं, जीव प्रकाशी हैं, हवा प्रकाशी है, लेकिन ये कर्म के अंधकार में बैठ गए। कर्म के अंधकार में 84 लाख योनियों को भोगना पड़ रहा है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में सदगुरु कबीर साहेब के अनुयायी साध संगत उपस्थित थे।

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