खेत-खलियान

आंवला फसल की बहार: किसानों के लिए अतिरिक्त आय का जरिया बना 

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बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। क्षेत्र के खेतों में इन दिनों विटामिन सी से भरपूर आंवला की बहार देखी जा रही है। पेड़ों पर लदे ढेरों फलों ने किसानों के चेहरों पर मुस्कान ला दी है। व्यापारी भी बड़ी मात्रा में सीधे खेतों तक पहुंचकर आंवला खरीद रहे हैं। स्थानीय एवं थोक बाजारों में लगातार बनी मांग के चलते यह फसल किसानों के लिए अतिरिक्त आमदनी का जरिया बनकर उभरी है।

हाइब्रिड आंवला ने बदली खेती की तस्वीर-
करीब दो दशक पहले कृषि एवं उद्यानिकी विभाग द्वारा किसानों को हाइब्रिड नस्ल के आंवला पौधे वितरित किए गए थे। उस समय किसानों ने इन्हें महज प्रयोग के रूप में लगाया था, लेकिन आज वही पौधे घने, फलदार पेड़ों का रूप लेकर खेतों की आर्थिक स्थिति बदल रहे हैं। पहले जंगलों में दिखने वाला आंवला अब ग्रामीण किसानों की व्यावसायिक फसलों में शामिल हो गया है।

हाइब्रिड किस्म का आंवला आकार में बड़ा होता है और प्रति फल का औसत वजन 20 से 22 ग्राम तक पहुंच जाता है। हालांकि देसी किस्म की तुलना में इसकी खटास कम होती है, लेकिन उत्पादन की मात्रा अधिक होने से किसानों को बेहतर लाभ मिल रहा है।

शौक से शुरू होकर लाभकारी फसल का सफर-
शुरुआत में आंवला पौधारोपण को किसानों ने आय का प्रमुख स्रोत नहीं माना था। किंतु बीते कुछ वर्षों में बाजार मांग बढ़ने से इसकी कीमतों में उछाल आया है।
थोक व्यापारी खेतों पर आकर 10 रुपये किलो की दर से आंवला खरीद रहे हैं, जबकि स्थानीय बाजार में इसकी कीमत 35 से 40 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है।

पेड़ों पर भरपूर पैदावार, टहनियां तक झुक गईं-
हाइब्रिड आंवला पेड़ों की पैदावार इस कदर बढ़ी है कि कई स्थानों पर फलों के भार से टहनियां झुकने लगी हैं और टूटने की स्थिति बन रही है। किसानों का कहना है कि यह फसल साल में एक बार आती है, लेकिन भरपूर उपज के कारण कम जमीन पर भी अच्छी आमदनी दे जाती है।

बढ़ती मांग ने बढ़ाई किसानों की उम्मीदें-
आंवला सुपारी एवं मुरब्बा बनाने वाले व्यापारी क्षेत्र में लगातार घूमकर फसल खरीद रहे हैं। औषधीय महत्व और उपयोगिता के कारण आंवला उत्पादों की खपत बढ़ी है, जिसने किसानों को इसे दीर्घकालिक रूप से अपनी खेती में शामिल करने के लिए प्रेरित किया है।

आंवला: सेहत और स्वाद का खजाना-
विटामिन सी से भरपूर आंवला सर्दियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बेहद कारगर माना जाता है। इसके साथ ही अचार, चटनी, मुरब्बा, चूर्ण, जूस और सुपारी बनाने में भी इसकी मांग बनी रहती है। आंवला आधारित उत्पादों का बाजार विस्तार किसानों को लंबे समय तक लाभ दे सकता है।

किसानों को मिली नई आर्थिक राह-
बेहरी समेत आसपास के गांवों के किसानों के लिए आंवला फसल किसी वरदान से कम नहीं। इससे एक ओर उनकी आय में वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी ओर खेती में विविधता लाने का अवसर भी प्राप्त हुआ है। बढ़ती मांग और बेहतर मूल्य संकेत देते हैं कि आने वाले वर्षों में आंवला फसल किसानों की आर्थिक मजबूती का प्रमुख आधार बन सकती है।

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