भौंरासा नगर का अनोखा परिवार: 70 से 80 सदस्य एक साथ मनाते हैं त्योहार, परंपरा और अपनापन की मिसाल

भौंरासा (मनोज शुक्ला)। आधुनिक युग में जहां संयुक्त परिवारों की परंपरा लगभग विलुप्त होती जा रही है और लोग एकाकी जीवन शैली अपनाने लगे हैं, वहीं भौरासा नगर के चौहान परिवार ने इस बदलते दौर में भी अपनी परंपराओं और पारिवारिक एकता को जीवित रखा है। इस परिवार की एकजुटता और परंपरा आज पूरे क्षेत्र के लिए मिसाल बनी हुई है।
चौहान परिवार के सात भाइयों के 14 पुत्रों और उनके बच्चों सहित लगभग 70 से 80 सदस्य आज भी हर तीज-त्योहार पर एक साथ इकट्ठे होकर पारंपरिक उल्लास के साथ पर्व मनाते हैं। इस विशाल परिवार की एकता देखकर नगरवासी भी आश्चर्यचकित रह जाते हैं।

परिवार के बुजुर्ग मुखिया उत्तम सिंह ठाकुर, पर्वत सिंह ठाकुर, कृपाल सिंह ठाकुर और जय सिंह ठाकुर वर्षों से अपने पूरे परिवार को एक सूत्र में पिरोए हुए हैं। यही कारण है कि चाहे दीपावली हो, गोवर्धन पूजा, रंगपंचमी या होली – सभी पर्व पूरे परिवार के एक साथ होने के प्रतीक बन चुके हैं।
परिवार के सदस्य जीवन सिंह ठाकुर बताते हैं कि, “हमारे परिवार के लोग भले ही नौकरी, व्यवसाय या बच्चों की पढ़ाई के चलते इंदौर, देवास, राजोदा और अन्य शहरों में रहते हों, लेकिन तीज-त्योहार आते ही सब कामकाज छोड़कर भौरासा लौट आते हैं। त्योहार केवल पूजा का अवसर नहीं, बल्कि परिवार को जोड़ने का माध्यम है।”

गोवर्धन पूजा बनी श्रद्धा और उल्लास का केंद्र-
बुधवार को ठाकुर मोहल्ला स्थित चौहान परिवार के आंगन में हुआ गोवर्धन पूजा उत्सव किसी मथुरा-वृंदावन से कम नहीं था। गली-गली में गूंज रहे थे “राधे-राधे” और “जय जय मोर मुकुट बंसीवाले की” जैसे भक्ति गीत। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सजीं, गरबा व भजन कर रही थीं, वहीं बच्चे और बुजुर्ग भी भक्ति में लीन नजर आए।
शाम 5 बजे से शुरू हुआ सामूहिक पूजन का क्रम देखते ही बनता था। परिवार की महिलाओं ने अपने घरों से गोबर एकत्रित कर सामूहिक रूप से गोवर्धन पर्वत का निर्माण किया। पारंपरिक विधि-विधान से पूजन, आरती और परिक्रमा की गई। पकवानों का भोग लगाया गया और अंत में परिवार की एक अनोखी परंपरा के तहत दो बैलों की जोड़ी से गोवर्धन को “गुदवाने” की रस्म निभाई गई। इसके बाद महिलाओं ने विधिवत बैलों की पूजा अर्चना की।
ग्रामीण परंपराओं का जीवंत उदाहरण-
परिवार के सदस्य बताते हैं कि गोवर्धन पूजा के दिन नगर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में भी पशुओं को नहलाकर, सजाकर, उनकी पूजा और अर्चना की जाती है। पशुओं को “छाबड़ा” खिलाने की परंपरा आज भी कायम है।
पूरे ठाकुर मोहल्ले में उस दिन का माहौल भक्ति, आनंद और उल्लास से भरपूर था। बैंड-बाजे की धुन पर आरती संपन्न हुई और चारों ओर एक ही स्वर गूंज रहा था “गोवर्धनधारी की जय!”
यह दृश्य साबित करता है कि अगर प्रेम, संस्कार और एकता का भाव मजबूत हो तो समय कितना भी बदल जाए, संयुक्त परिवार की परंपरा को जीवित रखा जा सकता है। चौहान परिवार ने अपने सामूहिक जीवन और आपसी सहयोग से यह सिद्ध कर दिया है कि एकता में ही शक्ति है और परंपरा में ही पहचान।




