गोवर्धन पूजा : प्रकृति और गौ-सेवा का संदेश देने वाला पावन पर्व

गोवर्धन पूजा, भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इसे अन्नकूट उत्सव भी कहा जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पर्यावरण, पशु-पालन और प्रकृति संरक्षण के भाव से भी जुड़ा हुआ है।
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा-
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पूजा की परंपरा की शुरुआत की थी। एक बार ब्रजवासी हर वर्ष की तरह इंद्र देव की पूजा की तैयारी कर रहे थे। तब बालक कृष्ण ने उन्हें समझाया कि वर्षा केवल इंद्र की कृपा से नहीं, बल्कि गोवर्धन पर्वत, गौ माता और प्रकृति की कृपा से होती है, जो सबके जीवन का आधार हैं।

कृष्ण के सुझाव पर ब्रजवासियों ने इस बार इंद्र की पूजा न कर, गोवर्धन पर्वत की पूजा की। इससे क्रोधित होकर इंद्र देव ने भारी वर्षा कर दी तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर पूरे ब्रज को वर्षा से बचाया। इसी घटना की स्मृति में आज भी गोवर्धन पूजा की जाती है।
गोवर्धन पूजा की विधि-
इस दिन लोग अपने घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाते हैं और उसके चारों ओर दीपक जलाते हैं। फिर गौ माता की पूजा, अन्नकूट प्रसाद और आरती की जाती है। गांवों में लोग गायों को नहलाकर, फूलों से सजाकर, माला पहनाकर और उन्हें स्वादिष्ट भोजन खिलाकर कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

कुछ स्थानों पर मंदिरों में अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है, जिसमें सैकड़ों प्रकार के व्यंजन बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाया जाता है।
गोवर्धन पूजा का महत्व-
1. प्रकृति की पूजा का प्रतीक: यह पर्व सिखाता है कि जीवन का आधार प्रकृति है पर्वत, जल, वायु, पशु और वनस्पति का संरक्षण ही मानव जीवन की समृद्धि का आधार है।
2. गौ-सेवा का संदेश: गाय भारतीय संस्कृति में ‘मां’ के समान मानी जाती है। गोवर्धन पूजा गौ-सेवा और गौ-संवर्धन का संदेश देती है।
3. अन्नकूट का भाव: इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को विविध अन्नों का भोग लगाया जाता है, जिससे ‘अन्न का सम्मान’ और ‘दान की भावना’ को बल मिलता है।
4. सामूहिकता और सहयोग: यह पर्व समाज में एकता, सहयोग और साझा उत्सव का प्रतीक है।
आधुनिक संदर्भ में गोवर्धन पूजा का संदेश-
आज जब पर्यावरण प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बढ़ता जा रहा है, ऐसे समय में गोवर्धन पूजा हमें याद दिलाती है कि मनुष्य और प्रकृति का संबंध पूरक है।
हमें अपने जीवन में पर्यावरण, पशु और अन्न के प्रति कृतज्ञता और जिम्मेदारी का भाव रखना चाहिए।

गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति, अन्न और गौ माता के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची समृद्धि तभी संभव है जब हम प्रकृति का सम्मान करें और उसके साथ संतुलन बनाकर चलें।



