खेत-खलियान

गेंदा, गुलाब और मोगरे से महक रहे खेत

Share

 

आठ महीने तक फूलों की फसल

नवरात्रि-दीपावली और शादियों में होती है सबसे ज्यादा खपत

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। स्थानीय खेतों में सिर्फ अनाज ही नहीं, बल्कि रंग-बिरंगे फूल भी लहलहाने लगे है। यही तस्वीर देखने को मिल रही है बेहरी की मिट्टी में, जहां किसान न सिर्फ गेंदा बल्कि गुलाब और मोगरे जैसे फूलों की खेती करके खुशहाली के नए रास्ते खोल रहे हैं। यहां के खेतों में वर्ष के आठ महीने तक छह प्रजातियों के गेंदा फूल खिलते रहते हैं। ये फूल आर्थिक रूप से किसानों के जीवन को भी महका रहे हैं।

इस साल करीब तीन हेक्टेयर भूमि पर पीले और केसरिया गेंदा लगाए गए हैं। हालांकि रकबा कम है, लेकिन जो किसान इस खेती से जुड़े हैं, वे इसे पूरे साल महत्व देते हैं। किसान रामसिंह बागवान बताते हैं, कि उन्होंने अकेले एक हेक्टेयर खेत में गेंदा लगाया है। श्राद्ध पक्ष में ही 20 से 25 रुपये किलो तक गेंदा फूल बिक रहा है।

त्योहारों और शादियों से बढ़ती है मांग-
नवरात्रि और दीपावली जैसे बड़े पर्वों पर फूलों की मांग अपने चरम पर होती है। स्थानीय बाजारों बागली, चापड़ा और हाटपिपलिया में ही इनकी खपत पूरी हो जाती है। दीपावली के बाद शादियों का मौसम शुरू होते ही फूलों की बिक्री और तेज हो जाती है। किसानों का कहना है, कि मंडी में थोक में बेचने से ज्यादा मुनाफा मालाएं बनाकर बेचने में है। परिवार के सभी सदस्य इस काम में हाथ बंटाते हैं। श्राद्ध पक्ष में 20 से 30 हजार तक के फूल बिक चुके हैं और दशहरे पर अकेले 20 हजार की मालाएं बिकने की उम्मीद है।

मोगरे और गुलाब का भी जलवा-
सिर्फ गेंदा ही नहीं, गर्मी के मौसम में यहां गुलदावरी, गुलाब और मोगरे की खुशबू भी खेतों से उठती है। खासकर मोगरे ने पिछले साल किसानों को बड़ा मुनाफा दिया। इसका भाव 500 रुपये किलो तक पहुंच गया था। वर्तमान में गेंदा और गुलाब थोक में 25 से 50 रुपये किलो बिक रहे हैं।

‘गति फूल’ है बेहरी की पहचान-
दीपावली के बाद यहां की सबसे खास पहचान बनता है कलकत्ती लाल रंग का छोटा गेंदा फूल, जिसे स्थानीय लोग “गति फूल” कहते हैं। इसकी मांग इतनी है कि इसे दूर-दराज के इलाकों तक भेजा जाता है।

खुशहाली का सुगंधित रास्ता-
बेहरी के किसान बताते हैं, कि फूलों की खेती न सिर्फ आर्थिक रूप से लाभकारी है बल्कि पूरे परिवार को रोजगार भी देती है। मजदूरों को फूल तोड़ने के लिए 350 रुपये प्रति बोरा तक दिए जाते हैं। यानी खेती के साथ-साथ रोजगार का भी जरिया बन चुकी है यह खुशबूदार खेती।

Related Articles

Back to top button