धर्म-अध्यात्म

गंधर्वपुरी के भोलेनाथ : जहां हर सावन में गूंजती है भक्ति की गाथा

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– राजा गंधर्वसेन के समय का प्राचीन शिव मंदिर

✍🏻 मनोज शुक्ला, भौंरासा/गंधर्वपुरी से विशेष रिपोर्ट

देवास जिले की पावन भूमि पर बसा एक छोटा-सा गांव, गंधर्वपुरी, हर सावन में शिवभक्ति की अलौकिक अनुभूति कराता है। सोनकच्छ तहसील से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव, न सिर्फ अपनी पुरातात्विक विरासत के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां स्थित भगवान भोलेनाथ का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का अटूट केंद्र बना हुआ है।

राजा गंधर्व सेन की विरासत-
यह मंदिर इतिहास की गहराइयों से जुड़ा हुआ है। बताया जाता है कि यह शिवमंदिर प्रतापी राजा गंधर्व सेन के शासनकाल में निर्मित हुआ था। पत्थरों से बने इस मंदिर की दीवारें और खंभे खुद ब खुद समय की कहानी कहते हैं। हर पत्थर पर उकेरी गई शिव-शक्ति की अद्भुत कलाकृतियां श्रद्धालुओं को भक्ति के साथ-साथ इतिहास की एक झलक भी देती हैं।

विशेष बात यह है कि शिवलिंग के ठीक पीछे राजा गंधर्व सेन की मूर्ति भी विराजमान है, मानो वह आज भी भोलेनाथ के चरणों में नतमस्तक होकर अपनी प्रजा की सुख-शांति की प्रार्थना कर रहे हों।

सूखा पड़े तो होता है विशेष अभिषेक-
गांव में एक विशेष धार्मिक परंपरा भी वर्षों से चली आ रही है। मान्यता है कि जब भी गांव में अकाल या सूखे जैसी स्थिति बनती है, भोलेनाथ का विशेष पूजन और अभिषेक पूरे गांव के सहयोग से किया जाता है। यह परंपरा आखिरी बार वर्ष 2000 में निभाई गई थी, जब ग्रामवासियों ने मिलकर आस्था और विश्वास के साथ वर्षा की कामना की थी।

सावन में कावड़ यात्राएं और जलाभिषेक-

सावन मास में जब पूरा देश शिवमय होता है, तब गंधर्वपुरी भी पीछे नहीं रहता। आसपास के गांवों से कावड़ लेकर श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को मंदिर परिसर में भारी भीड़ उमड़ती है। शिवभक्त हर हर महादेव के जयघोष के साथ वातावरण को भक्तिमय कर देते हैं।

महाकाल की अंतिम सवारी में शामिल होता है यहां के भोलेनाथ का मुखौटा-
गंधर्वपुरी के भोलेनाथ की महत्ता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भादो मास में उज्जैन में निकलने वाली बाबा महाकाल की अंतिम सवारी में यहां के भोलेनाथ का मुखौटा शामिल किया जाता है। यह एकमात्र ऐसा गांव है, जिसका प्रतिनिधित्व महाकाल की सवारी में होता है। यह दृश्य गांववासियों के लिए गौरव और आस्था का विषय है।

गांववासियों के लिए आस्था का प्रतीक-
गांव के शेरसिंह कुशवाह, देवी कुशवाह और राकेश चौधरी बताते हैं कि यह मंदिर उनके जीवन का केंद्र है। हमारे दुख-सुख के साथी हैं भोलेनाथ। सावन आए या भादो, यहां हर दिन एक उत्सव है।

हर शिवभक्त को एक बार इस मंदिर में जरूर दर्शन करने आना चाहिए, खासकर सावन के पवित्र महीने में, जब यहां की भक्ति अपने चरम पर होती है।

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