धर्म-अध्यात्म

क्षमापना है तो ही पर्युषण की सार्थकता है

हाटपिपल्या (विनोद जाट)। पर्युषण के अंतर्गत ग्यारह वार्षिक कर्तव्यों का भी उल्लेख आता है। वर्षभर में इन्हे भी हमें पूर्ण करना चाहिए। ये कर्तव्य है- संघ पूजन, साधर्मिक भक्ति, तीर्थ यात्रा, स्नात्र महोत्सव, देवद्रव्य वृद्धि, महापूजा, रात्रि जागरण, श्रुत पूजा, उद्यापन, तीर्थ प्रभावना, आलोचना प्रायश्चित। पर्वाधिराज पर्युषण हमारे जीवन का प्राण है, शुद्धि का सूत्र है, हृदय का हार है।
पर्युषण का दूसरा नाम क्षमापना पर्व भी है। क्षमापना है तो ही पर्युषण की सार्थकता है। मिच्छामि दुक्कड़म कहकर हम क्षमापना करते हैं। मिच्छा का अर्थ है मिथ्या, दुक्कड़म का अर्थ नष्ट होना है। मेरे जीवन की सभी मिथ्या भाव समाप्त हो जाए, यही क्षमापना की शुद्ध भावना है।
श्री चंद्रप्रभ स्वामी श्वेतांबर जैन मंदिर में पर्युषण महापर्व के तीसरे दिन धर्मसभा में ओमकार ग्रुप सूरत से पधारे पार्थभाई मेहता, केविनभाई डोसी और भव्यभाई मेहता ने यह बात कही। क्षमा मांगना सरल है लेकिन क्षमा करना अत्यंत दुष्कर कार्य है। इसीलिए तो क्षमा को वीरों का आभूषण माना गया है, कायरों का नहीं। कल्पसूत्रजी को घर ले जाने का लाभ राजेशकुमार संजयकुमार बम परिवार ने लिया। आरती पश्चात देर रात तक कल्पसूत्र की संगीतमय भक्ति भावना का कार्यक्रम चलता रहा, जिसमें श्रद्धालु झूमते रहे। चतुर्थ दिवस कल्पसूत्र का वचन प्रारंभ होगा, जिनकी पांच ज्ञान पूजा की जाएगी। उसके पश्चात समाजजन कल्पसूत्र का श्रवण करेंगे, जिसमें 24 तीर्थंकर भगवान का जीवन परिचय आएगा। आगामी कार्यक्रम में 16 सितंबर को भगवान महावीर स्वामी के जन्म का अध्याय आएगा, जिसे महावीर स्वामी जन्म वाचन समारोह के रूप में मनाया जाएगा।

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