खजूर से लदे हैं पेड़, मई में आएगा फलों का पकाव चरम पर

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। इन दिनों बेहरी व आसपास के क्षेत्रों में खजूर के पेड़ फलों से लदे हुए हैं। हालांकि अभी यह प्रारंभिक दौर है। मई माह के अंतिम सप्ताह में ये खजूर पूरी तरह पककर तैयार हो जाएंगे।
क्षेत्र में बड़ी संख्या में खजूर के पेड़ सड़कों के किनारे, जंगलों तथा सरकारी जमीनों पर स्वाभाविक रूप से उग आए हैं। यह प्राकृतिक उपहार अब आदिवासी परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण आय का साधन बनता जा रहा है।
चिकित्सकों के अनुसार खजूर न केवल स्वादिष्ट फल है, बल्कि सेहत के लिए भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर, आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम और ऊर्जा देने वाले प्राकृतिक शर्करा तत्व पाए जाते हैं। आयुर्वेद में खजूर को बलवर्धक, पाचन में सहायक एवं हृदय के लिए लाभकारी बताया गया है।
बाजार में मिलती है अच्छी कीमत-
गांवों के आदिवासी परिवार खजूर इकट्ठा कर उन्हें आसपास के हाट-बाजारों में बेचते हैं। हालांकि यह काम परिश्रम भरा है, क्योंकि पेड़ों पर चढ़कर फलों को सावधानीपूर्वक तोड़ना पड़ता है। लेकिन इसके बदले में इन्हें अच्छी कीमत मिल जाती है जिससे इन परिवारों की आमदनी में इजाफा होता है।
पत्तियों से बनाते हैं झाड़ू और सजावटी वस्तुएं-
केवल खजूर के फल ही नहीं, बल्कि इसकी पत्तियों का भी उपयोग किया जा रहा है। स्थानीय आदिवासी परिवार की महिलाएं खजूर की पत्तियों से झाड़ू, टोकरी और अन्य सजावटी वस्तुएं बनाती हैं। यह कारीगरी न केवल पारंपरिक हुनर को जीवित रखे हुए हैं, बल्कि इन उत्पादों को बेचकर अतिरिक्त आमदनी भी हो रही है।
संरक्षण की दरकार-
प्रकृतिप्रेमी पूर्व सरपंच रामचंद्र दांगी, शांतिलाल पाटीदार, सूरजसिंह पाटीदार का कहना है, कि खजूर के पेड़ प्राकृतिक रूप से उगते हैं, लेकिन यदि इनका संरक्षण और व्यवस्थित उपयोग किया जाए तो यह बड़े पैमाने पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं। ग्रामीणों और वन विभाग की साझेदारी से इन पेड़ों की संख्या बढ़ाई जा सकती है और खजूर को एक स्थानीय ब्रांड के रूप में विकसित किया जा सकता है।



