छोटे-छोटे कदम, बड़ी उड़ानें

– आजीविका समूह ने बदली 2000 दीदियों की तकदीर
– आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ती महिलाएं, जो कभी पलायन को मजबूर थीं, आज बनीं सफल उद्यमी
बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। कभी जो गांव खाली होते जा रहे थे, जहां रोजगार के अभाव में पलायन ही एकमात्र रास्ता नजर आता था, आज वहीं गांव आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रहे हैं। यह कहानी है करीब 2000 महिलाओं की, जिन्होंने आजीविका समूह की सहायता से न केवल अपने जीवन की दिशा बदली, बल्कि अपने परिवार और समाज में भी एक नई पहचान बनाई।
बेहरी समेत आसपास के क्षेत्रों में आजीविका समूह के प्रयासों से अब छोटे-छोटे व्यवसायिक अवसरों का निर्माण हो रहा है। महिलाओं को प्रशिक्षण और आर्थिक सहायता मिल रही है। इसका परिणाम यह है कि वे अब शिक्षित, जागरूक, आत्मनिर्भर और सम्मानजनक जीवन जी रही हैं। किसी जमाने में गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करने वाली ये महिलाएं आज प्रतिमाह 15 से 20 हजार रुपए तक की कमाई कर रही हैं और “लखपति दीदी” के नाम से जानी जा रही हैं।
भूरी की दुकानदारी ने बदली किस्मत-
बेहरी गांव की भूरी और उनके पति नारायण पहले मजदूरी करते थे, वो भी अनियमित। 6 बच्चों के पालन-पोषण में जीवन संघर्ष बन गया था। तीन साल पहले भूरी आजीविका समूह से जुड़ीं। पहले मसालों की छोटी सी दुकान शुरू की, फिर 25,000 का कर्ज लेकर कारोबार बढ़ाया। समय पर कर्ज चुकता किया और 50,000 का नया कर्ज लेकर साड़ी की दुकान शुरू की। आज वे पति के साथ मिलकर मसाला, साड़ी और किराना दुकान चला रही हैं। बच्चों की अच्छी पढ़ाई करवा रही हैं और आत्मविश्वास से भरी हुई हैं।
माया का सफर मजदूरी से ई-रिक्शा तक-
चारबड़ी की माया सरवन के परिवार की आय केवल पति की मजदूरी पर निर्भर थी। 2021 में माया आजीविका समूह से जुड़ीं। पहले कटलरी की दुकान शुरू की, लेकिन उम्मीद के मुताबिक नहीं चला। फिर समूह से 50,000 का कर्ज लेकर बैटरी चालित रिक्शा खरीदा। अब वह रामपुर से बागली तक खुद रिक्शा चलाकर अच्छी आय कमा रही हैं।
उषा बनीं सफल दुकानदार और दुग्ध विक्रेता-
मालीपुरा की उषा, जो कभी पति की मजदूरी पर निर्भर थीं, अब घर की आय का अहम स्तंभ बन गई हैं। 2018 में जीविका समूह से जुड़कर उन्होंने 70,000 का कर्ज लिया और दुकान में सामान भरा। अब वे पति के साथ मिलकर दुकान भी चला रही हैं और दूध भी बेच रही हैं। आज उनका परिवार आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है।
ज्योति ने पीडीएस दुकान से कमाई को दी नई दिशा-
बेहरी की ज्योति राकेश चौधरी ने समूह की मदद से सरकारी पीडीएस दुकान का संचालन शुरू किया। आज वे सफलतापूर्वक अनाज वितरण की इस व्यवस्था को चला रही हैं और अपने परिवार का भरण-पोषण आत्मसम्मान से कर रही हैं।
एक दशक का परिश्रम, हजारों परिवारों की तरक्की-
आजीविका समूह के एक दशक से चल रहे सतत प्रयासों का ही यह परिणाम है कि आज इन महिलाओं की जिंदगी में असल बदलाव आया है। न सिर्फ आर्थिक तौर पर, बल्कि सामाजिक, शैक्षणिक और मानसिक रूप से भी वे पहले से ज्यादा मजबूत और आत्मनिर्भर बनी हैं।




