धर्म-अध्यात्म

जो सांस चल रही है, उस पर सत्य पुरुष, विष्णु तत्व और विश्व का अणु तत्व शोभायमान है- सद्गुरु मंगल नाम साहेब

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देवास। जो जीव युग-युगांतर तक जीवित रहता है और कभी नहीं मरता, वही परम तत्व जीव है। उस परम तत्व को भाषा में पूरी तरह बांधा नहीं जा सकता। केवल भाष में ही उसे बंधा गया है, क्योंकि भाष जीव से पहले उत्पन्न हुआ है। यदि वह इंद्रियों से पहले होता, तो भाषा में पूर्णतः बंध जाता।
यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सतगुरु प्रार्थना स्थली, प्रतापनगर में आयोजित गुरुवाणी पाठ, सात्त्विक यज्ञ एवं सर्वोदय चौका के दौरान व्यक्त किए। ज्ञान और कर्म, इंद्रियों के माध्यम से बोध होता है। कर्म, कर्म इंद्रियों से होता है और बौद्ध इंद्रियों से ज्ञान प्राप्त होता है, किंतु इन सबसे पहले भी परम तत्व विद्यमान था, है और रहेगा। सत्य पुरुष को बांधा, बोला या पूरी तरह समझा नहीं जा सकता। वह केवल गुरु-शिष्य संवाद के माध्यम से ही प्रकट होता और समझ में आता है।
उन्होंने आगे कहा कि पांच फनों वाले सर्प पर भगवान विष्णु को शयन करते हुए दिखाया गया है, जिसे “चरण गंगा” कहा गया है। आध्यात्मिक भाषा में “सर्प” का अर्थ “चलना” होता है। जो श्वास चल रही है, उसमें पांच फनों वाला विष्णु तत्व और विश्व का अणु तत्व शोभायमान एवं जागृत हो रहा है। इसे “चरण गंगा” कहा जाता है, जो सत्य पुरुष भगवान विष्णु के चरणों से प्रवाहित होने वाली स्वर गंगा है।
स्वर को “स्वर सती” कहा गया है और यह श्वेत रंग का होता है। संपूर्ण संसार का मूल बीज श्वेत रंग का है, जिस पर पंचतत्व अपना-अपना रंग प्रसारण करते हैं। चैतन्य करते हैं, लेकिन वह दिखाई देता है। अंततः प्रलय को प्राप्त होता है।
जो उत्पन्न हुआ, वह ब्रह्मा तत्व कहलाया। जो स्थित रहा, वह रजोगुण, तमोगुण एवं सतोगुण के प्रवाह में बहकर अंततः प्रलय को प्राप्त हो जाता है। किंतु जो परम तत्व जीव है, वह अजर, अमर और अविनाशी है।
कार्यक्रम सद्गुरु मंगल नाम साहेब, नितिन साहेब एवं नीरज साहेब के सान्निध्य में संपन्न हुआ। इस दौरान साध संगत द्वारा निर्गुणी भजनों एवं सत्संग का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के उपरांत महाप्रसाद का वितरण किया गया। इस संबंध में जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।

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