Gyan Ganga: देवराज इन्द्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को भगवान श्रीकृष्ण ने कैसे बचाया था?

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परीक्षित ने यहाँ एक शंका व्यक्त की, भगवान ! सात दिनों तक मूसलाधार बरसात व्रज मण्डल में होती रही। भगवान ने व्रजवासियों को गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण देकर उनकी रक्षा तो कर ली किन्तु इतना बरसात का पानी कहाँ गया ?

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥ 

प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! भागवत-कथा स्वर्ग के अमृत से भी अधिक श्रेयस्कर है। आइए ! इस कथामृत सरोवर में अवगाहन करें और जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति पाकर अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ।

मित्रों! पूर्व प्रसंग में हम सबने गोवर्धन लीला का श्रवण किया। भगवान ने किसी भी देवता का अभिमान नहीं रहने दिया। भगवान ने देवराज इन्द्र की पूजा का विरोध करते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया और गोवर्धन की पूजा करवाई। 

                                                                

स्वयं पुजारी और स्वयम पूज्य बन गए। व्रजवासी भगवान के अद्भुत रूप को देखकर बड़े प्रसन्न और प्रमुदित हुए। पर जब इन्द्र ने अपने सेवक से पूछा अरे! भाई प्रति वर्ष दीपावली के अवसर पर हमारी पूजा हुआ करती है इस साल तो दीपावली भी निकल गई, प्रतिपदा भी जाने वाली है अब तक हमारी पूजा क्यों नहीं हुई? जाओ पता लगाओ। सेवक ने आकर जब व्रज का वातावरण देखा और गोवर्द्धन की जय-जयकार सुनी तो दौड़कर इन्द्र के पास आया और बोला- सरकार अब व्रज से आपका पता साफ। क्या मतलब? मतलब यह है कि व्रज में आपका नाम लेने वाला अब कोई नहीं है। सब गोवर्धन नाथ की जय बोल रहे हैं। और यह सब कृष्ण ने करवाया है। यह सुनकर इन्द्र आगबबूला हो गया। क्रोध में इन्द्र का विवेक शून्य हो गया। भगवान को ही गाली देने लगा। 

वाचालम बालिशम स्तब्धम अग्यम पंडित मानिनम 

कृष्णम मर्त्य मुपाश्रित्य गोपा मे चक्रू; अप्रियम ॥  

इन गँवार ग्वालों ने कृष्ण के कहने में आकर देवराज इन्द्र का अपमान कर दिया। इसका फल इनको भोगना पड़ेगा। इन्द्र ने बड़े-बड़े मेघों से कहा- जाओ व्रज प्रदेश को नष्ट कर दो। बड़े-बड़े मेघराज व्रजमंडल में आकर गडगड़ाने लगे। आसमान में बिजली चमकने लगी और देखते ही देखते भयंकर बरसात होने लगी। कार्तिक का महीना अति वृष्टि से दुखी होकर सभी काँपने लगे, दौड़े-दौड़े गोविंद के पास आए। गोपा गोप्यश्च शीतार्ता गोविंदम शरणम ययु;।

कृष्ण कृष्ण महाभाग त्वनाथम गोकुलम प्रभो 

त्रातुमर्हसि देनान्न: कुपितात भक्त वत्सल;॥ 

हे भक्तवत्सल प्रभो ! हमको इन्द्र के प्रकोप से बचाओ। देवराज इन्द्र नाराज हो गया। शरण में आए व्रजवासियों को देखकर भगवान विचार करने लगे। यह मेरी प्रतिज्ञा है जो मेरी शरण में आता है उसे मैं अभय प्रदान कर देता हूँ। ये सारे व्रजवासी मेरे हैं इनकी रक्षा में देरी नहीं करनी चाहिए। भगवान ने कहा- बिलकुल मत घबड़ाओ। जिस देवता ने पूजा कारवाई है, वही देवता हमारी रक्षा भी करेगा। चलो सब मेरे साथ। सबको साथ लेकर भगवान गोवर्धन की तलहटी में पहुँच गए। व्रजवासी बोले- अब हम क्या करें? भगवान ने कहा–  नाम संकीर्तन करो। देवता कुछ उपाय बताएगा। व्रजवासी हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे। 

गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण  

प्रभु तेरी शरण हरि तेरी शरण। गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण ———— 

शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित! व्रजवासी आँख बंद करके संकीर्तन कर ही रहे थे कि कन्हैया ने अचानक गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी को पुकारा- अरे! व्रजवासी तुम सभी गाय-बछड़ों और सामग्री के साथ आओ और आराम से बैठ जाओ। सारे व्रजवासी गोवर्धन पहाड़ के नीचे आराम से बैठ गए। भगवान ने उन व्रजवासियों की भूख-प्यास हर ली और सात दिनों तक अपनी कनिष्ठिका उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा। सभी को अभय प्रदान किया। बोल गोवर्धन भगवान की जय—- 

अब इन्द्र को कृष्ण की योगमाया का प्रभाव देखकर आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उनका घमंड चकनाचूर हो गया। श्री कृष्ण ने देखा कि आसमान साफ हो गया आंधी वर्षा के बादल छंट गए तो सभी गोप-गोपियों को अपने-अपने घर जाने का आदेश दिया। सब लोग यशोदा मैया और नन्द बाबा के साथ खुशियाँ मनाते, कन्हैया को आशीर्वाद देते गोकुल में लौट आए।

भगवानपि तं शैलं स्वस्थाने पूर्ववत प्रभु:

पश्यतां सर्वभूतानां स्थापयामास लीलया।।

व्रजवासियों ने भगवान पर भरोसा किया। भगवान ने उन्हे उस विकराल संकट से उबारा। 

परीक्षित ने यहाँ एक शंका व्यक्त की, भगवान ! सात दिनों तक मूसलाधार बरसात व्रज मण्डल में होती रही। भगवान ने व्रजवासियों को गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण देकर उनकी रक्षा तो कर ली किन्तु इतना बरसात का पानी कहाँ गया ? क्या पूरा व्रजमंडल प्रचंड पानी के प्रवाह में डूब या बह नहीं गया ?  

शुकदेव जी कहते हैं— परीक्षित ! भगवान पर भरोसा करने वाले का कुछ नहीं बिगड़ता है। एक बड़ी प्यारी कथा आती है। त्रेता युग की बात है। एक बार पार्वती ने शिवजी से कहा, हम लोग पुण्य का कोई काम नहीं करते, मैं चाहती हूँ कि अपने घर ब्राह्मणों का भोज कराया जाए। पहले तो शिवजी ने आना-कानी की लेकिन बाद में पार्वती स्त्री हठ के सामने झुकना पड़ा। 

कहा— ठीक है तुम भोज की तैयारी करो मैं ब्राह्मणों को बुलाकर लता हूँ। विविध प्रकार के व्यंजन बनें। शिवजी केवल एक ब्राह्मण अगस्त्य ऋषि को लाए। पार्वती जी फिर बिगड़ी, कहा- मैंने इतना सारा खाद्य पदार्थ बनाया है और केवल एक ब्राह्मण ? शिवजी ने कहा- पहले इन्हीं को भरपेट खिलाओ तब तक अन्य ब्राह्मणों को लेकर आता हूँ। अगस्त्य जी खाने लगे, माँ पार्वती बनाते-बनाते थक गईं किन्तु अगस्त्य जी नहीं थके, थकना तो दूर अभी तक डकार भी नहीं लिया।

शिवजी ने पूछा— ऐसे ही दो चार ब्राह्मण और लेके आऊँ ? पार्वती जी थककर चूर चूर हो गईं थी। नहीं में सिर हिला दिया। अब अगस्त्य जी ने कहा- भोजन से तो पेट भरा नहीं कम से कम पानी ही पिला दो। शिवजी ने कहा- ब्राह्मण देव ! द्वापर युग की प्रतीक्षा कीजिए। उसी द्वापर युग क़ृष्णावतार में व्रजमंडल में सात दिनों तक मूसलाधार वर्षा होती रही और अगस्त्य जी पान करते रहे। भगवान कृष्ण ने भी सबके सामने ही खेल-खेल में ही गिरिराज को पूर्ववत उसके स्थान पर स्थापित कर दिया।

शेष अगले प्रसंग में —-    

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ———-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।

-आरएन तिवारी

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