देवास। सुरगुरु की उपासना करने वाला अपने पुत्र और मित्र से प्रेम करता है, वह सारे संसार से प्रेम करता है। फिर ऐसे मानव मन में कोई भेद नहीं रह जाता है। जो सुरगुरु से हट गया वह करवत चलाता है, वह तलवार चलाता है।
जो सुरगुरु का उपासक हो गया वह अपने हाथों से दया और प्रेम रूपी प्रसाद बांटता है। वह करुणामय हो जाता है। जो सुरगुरु से हट गया वह निर्दयी, कसाई के समान हो जाता है। असीम आनंद प्राप्त करना है तो सुरगुरु की उपासना शुरू करो। सुरगुरु की ओर लौटो। अगाध प्रेम है उसमें, प्रेम की कोई सीमा ही नहीं।
यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थलीय मंगल मार्ग टेकरी पर आयोजित गुरु शिष्य चर्चा, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा, कि ऐसा नहीं है कि सुरगुरु आज यहां, कल वहां नहीं है। वह मंगलवार को है और बुधवार को आपके साथ नहीं है। प्राण सदा सुखदाई, प्राण सदा सबको सुलभ, सब दिन, सब जगह वह मौजूद है। कहीं भी खड़े हो जाओ। करम भरम सबको हटाकर के सद्गुरु की शरण में चले जाओ। कर्म जो हाथ से किया जाने वाला है।
मन में व्याप्त भरम को मिटाकर श्वास की ओर लौट जाओ, वही तुम्हारा सुरगुरु है। सुरगुरु के पास दया ही दया है और जो सुरगुरु से हट गया वह कसाई है। सुरगुरु की ओर लौटने की समझ गुरु शिष्य संवाद, सद्गुरु के वाणी विचारों को आत्मसात करने से ही होगा। इसलिए निर्बेर होकर सुरगुरु के उपासक हो जाओ। जो निर्बेर होकर सद्गुरु की शरण मे चला गया तो सद्गुरु कर्म भरम को हटा देते हैं। संतों, सद्गुरुओं का सानिध्य करने से ही सुरगुरु की समझ पैदा होगी, बिना सद्गुरु के करम भरम का पर्दा हटाने वाला नहीं है। यह जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।