हरि के कंधे पर बैठकर ही हम हरि को ढूंढ रहे हैं- सद्गुरु मंगल नाम साहेब

देवास। मौन ही वह अवस्था है, जहां हरि का साक्षात्कार होता है। जब सांसारिक दौड़-धूप और झूठे झगड़ों से हार जाते हैं, तब भीतर समझ का प्रकाश होता है और उसी में परमात्मा का अनुभव मिलता है। यह उद्गार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने व्यक्त किए।
सतगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थलीय सेवा समिति, मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरुवाणी पाठ एवं गुरु-शिष्य चर्चा में मंगल नाम साहेब ने साध संगत को संबोधित करते हुए कहा, कि हरि को बाहर खोजने वाले योगी, सिद्ध, तपस्वी और मुनि अंततः हार गए और हरि को अपने भीतर ही पाया। जब मौन हुआ तो सारा संसार मिट गया और केवल हरि रह गया। उस अवस्था में ‘मैं’ और ‘हरि’ का भेद समाप्त हो जाता है। तब यह भी ज्ञात नहीं होता कि मैं हूं या हरि है।
उन्होंने आगे कहा, कि निज स्वरूप को लखते ही आस-भाष, कली-काल और कल्पनाएं नष्ट हो जाती हैं। हजारों-करोड़ ग्रंथ लिखे गए, किंतु परमात्मा का अनुभव केवल भीतर मौन में ही पाया गया, इसलिए उस परमात्मा को बाहर खोजने में समय व्यर्थ न गंवाएं, क्योंकि वह आपके भीतर है – निकट से भी अधिक निकट।
मंगल नाम साहेब ने संतों की वाणी का उल्लेख करते हुए कहा, कि अनंत हरि का गुणगान संतों ने भांति-भांति से किया है, लेकिन वास्तविक साक्षात्कार अपने अंतर में मौन के द्वारा ही संभव है।
इस अवसर पर साध संगत ने सद्गुरु मंगल नाम साहेब का पुष्पमालाओं और नारियल भेंटकर स्वागत किया। कार्यक्रम की जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।



