वर्षों पुरानी छाबड़ा एवं गोवर्धन पूजन की परंपरा निभाई

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Dharm adhyatm

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। दीपावली के एक दिन बाद मालवा एवं निमाड़ क्षेत्र में पशुधन पूजा की परंपरा निभाई जाती है। इसके तहत सुबह जल्दी उठकर पालतु पशुओं को नहलाकर उन्हें तैयार किया गया। अलग-अलग प्रकार से श्रृंगार किया गया।

इस अवसर पर ग्रामीण क्षेत्र में छाबड़ा रस्म निभाई गई। निश्चित स्थान पर पशुधन मालिक किसान अपने मवेशियों को सजाकर प्रहलाद महाराज के बाडे में एकत्रित हुए। यहां पर खेल खेलते हुए गायों और बछड़े को दूर-दूर किया गया। बछड़े को ढूंढने के लिए गायों ने दौड़ लगाई। गाय ने अपने बछड़े के पास आने के लिए लकड़ी में बंधे छाबड़ा को तोड़ने का प्रयास किया। इसी परंपरा को छाबड़ा प्रथा कहते हैं। शाम होते ही किसान परिवार अपने बैलों की जोड़ी को घर आंगन लाकर उनकी पूजा करते हैं और दीपावली पर बने पकवान खिलाते हैं। इसी दौरान अपने पशुओं का गोबर महिलाएं एकत्रित कर अपने-अपने घर के सामने गोवर्धन पर्वत बनाती है।

दीपावली के एक दिन बाद मनाए जाने वाला पर्व कृषि पर आधारित है। साथ में गोवंश की पूजा करना वर्षों पुरानी धार्मिक परंपरा है। आज भी ग्रामीण क्षेत्र में 70 प्रतिशत परिवार पशुधन के मालिक है और दूध व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।

Govardhan puja

गांव के किसान केदार पाटीदार बताते हैं, कि आज भी गांव में किसी घर में बाजार से मावा खरीदकर नहीं लाते हैं। सभी घर पर ही मावा बनाते हैं और दूध से बनी शुद्ध मिठाई से दीपावली पर्व पर माता लक्ष्मी को भोग लगाते हैं। बैल पूजन के दिन भी खीर-पूरी बनाकर गोवंश को खिलाने की परंपरा यहां पर है। सुहागिन स्त्रियां इस दिन सुबह जल्दी उठकर देव दर्शन के साथ-साथ बुजुर्गों के पैर छूती है। यह परंपरा परिवारों को आपस में जोड़कर रखे हुए हैं। दीपावली पर्व पर दूरस्थ क्षेत्र में काम करने वाले परिवार के सदस्य भी घर पर आ जाते हैं। 5 दिनों तक गांव में अच्छी चहल-पहल दिखाई देती है।

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