धर्म-अध्यात्म

दूध के लिए नहीं के दुख दूर करने के लिए होती है गोमाता

– प्रत्येक हिंदू अपने घर पर एक गाय पाले तो होगा गोरक्षण

– मालवा के संत पं. कमलकिशोर नागर ने प्रवचन के दौरान जीवन उपयोगी संदेश दिए

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। घर-घर में गाय होना चाहिए। जिनके यहां गाय है वो देसी गाय रखो। गाय दूध के लिए ही नहीं होती। गाय तो दुख दूर करने के लिए होती है। दूध पर अधिकार बछड़े का है। जिस जर्सी गाय को अधिक दूध के लिए पालते हो, उसके पीछे मेहनत करते हो, लेकिन वह दूध तो पूतना का है। यदि पूतना का दूध श्रीकृष्ण का नुकसान करने के लिए आया था तो यह भी तो विदेश से पूतना आई है। एक-एक हिंदू के घर गाय हो तो गोमाता का बच सकती है। गोरक्षण हो सकता है।

मालवा के संत पं. कमलकिशोर नागर ने बागली-बेहरी मार्ग पर भोमियाजी मंदिर के समीप श्रीमद भागवत कथा में ये संदेश दिए। उन्होंने कहा कि समय बड़ा नाजुक है। हलका, पतला, औछा पहनावा मत पहनो। काम खुला घूम रहा है। पहले काम इतना खुला नहीं घूमता था। तलवार मयान में होने पर नुकसान नहीं पहुंचाती। अगर खुली तलवार कहीं खिंच जाए तो नुकसान हो जाता है। खुली तलवार बर्बाद कर देती। अपने पहनावे का ध्यान रखों।

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संतश्री ने माता-पिता को संदेश देते हुए कहा अगर सुधारना है तो बेटी को सुधारना, बहू को मत। बेटी सुधर गई तो उसी में कल्याण है। बेटी जब बहू बनेगी तो वह दूसरे परिवार का भी कल्याण करेगी। संतश्री ने बेटियों से अाग्रह करते हुए कहा, कि जिनको शादी के बाद अलग होना है। सास-ससुर बुरे लगे, देवर-जेठ नहीं होना चाहिए और सास-ससुर तो होना ही नहीं, हम तो अलग रहेंगे, ये सोच है तो फिर किसी अनाथ आश्रम से कोई लड़का ले आओ और शादी कर लो। नहीं तो जो मां-बाप वाले हैं और जिनका घर अच्छा चल रहा है, उनका जीना हराम हो जाएगा। हम यह बात बेटियों को प्रेम से कह रहे हैं। उन्हें परिवार के लोग पसंद नहीं है तो अनाथ आश्रम में लड़का पसंद कर लेना चाहिए।

आशीर्वाद दुकान में नहीं मिलता-

संतश्री ने कहा कि पूजा करने के बाद पांव पड़ते हैं तो आशीर्वाद मिलता है। जो आपके माता-पिता, भाई, बहन आपको अंतरआत्मा से आशीर्वाद देंगे, वह बाहर वाला दूसरा थोड़े ही देगा। जिनके घर बड़े-बूढ़ों की कमी है, उन्हें आशीर्वाद देने वाला कोई नहीं मिलता। घर में सबकुछ है, किसी बात की कमी नहीं है, लेकिन आशीर्वाद देने वाले नहीं है। बाजार से सभी वस्तु आप ला सकते हो, लेकिन आशीर्वाद दुकान पर नहीं मिलता। ध्यान रखों कि जिस घर व सभा में बूढ़े लोग नहीं है, वह घर-सभा शोभा नहीं देते। घर में बड़े-बूढ़े होना चाहिए। घर में वृद्ध और खेत की मेढ़ पर वृक्ष होना चाहिए। दोपहरी में वृक्ष की छांव में ही विश्राम करोंगे, उसी प्रकार घर में भी वृद्ध हैं तो विश्राम मिलता है। संतश्री ने कहा कि कोई धार्मिक आयोजन करवाते हो तो पेंपलेट छपवाते हो। अगर पेंपलेट छपवाते हो तो उसमें भगवान के फोटो मत लगाओ। ये पांव के नीचे आते हैं, फटते हैं। अपने भगवान का अपमान होता है। अगर कोई गीतों में भगवान का अपमान करता है, कार्टून बनाता है तो इसका विरोध करें।

उमर बढ़ाने का एकमात्र साधन है आशीर्वाद-

संतश्री ने कहा कि आपके घर में साल में एक-दो बार ब्राह्मण के चरण पड़ जाए, ऐसा धार्मिक कार्य अवश्य करना चाहिए। कभी हवन करवा लिया, कभी कथा करवा ली, संक्रांति, अमावस्या, पूर्णिमा पर उन्हें बुलवा लिया। ब्राह्मण अपने श्रीमुख से पंचांग की तिथि आदि बताते हैं तो जो घर के लोग सुनते हैं, उससे उनकी आयु बढ़ती है। उमर बढ़ाने का दुनिया में कोई साधन नहीं है। एक तो माता-पिता का आशीर्वाद और एक ब्राह्मण के श्रीमुख से निकला हुआ वचन।

संतश्री ने कहा कि एक सूत्र और याद रखना घर के बैठक कक्ष में बहू-बेटी के फूहड़ फोटाे मत लगाना। ये फोटो दुनिया को दिखाने के लिए नहीं है। इस प्रकार के फोटो लगाने से माता-पिता के सामने मर्यादा भंग होती है। यह मर्यादा पुरुषोत्तम का देश है।

समुद्र अपनी बेबसी कह नहीं सकता-

संतश्री ने कहा समुद्र अपनी बेबसी किसी से कह नहीं सकता। वह फैला तो कोसाे दूर तक है, परंतु बह नहीं सकता। नदी-नाले बहते हैं। कई नदियां तीर्थों से होकर निकलती है। उन्हें इसका आनंद आता है। समुद्र भी बहना चाहता है, उसे जोश आता है और वह उछाल भरता है, फिर कुछ दूर जाता है, कोई काम आ जाता है और लौट आता है। सूत्र यह कहता है कि नदी-नाले छोटे हैं। वे निकल पड़ते हैं और बहते हैं, दुनिया घूमते हैं। समंदर बहुत बड़ा है, फैलावा बहुत है। वह बड़े आदमी के समान है। बड़ा आदमी नमता नहीं है। यही जिद थी रावण की। रावण कहता था मैं कटा शिश और कटा हाथ जोड़ सकता हूं, लेकिन राम के हाथ नहीं जोड़ सकता। जो लोग बड़े हैं, बड़े पदों पर बैठे हैं, जिनका बड़ा पसारा है, वो समुद्र हैं। कहीं निकल नहीं सकते। गरीब लोग उधार लेकर भी कथा-तीरथ में और धर्म के काम में पहुंच जाते हैं।

भक्त भोजन के नहीं, भगवान के भूखे हैं-

संतश्री ने कहा अक्सर बड़े लोग इन छोटे लोगों को कोसते हैं। कहते हैं ये तो हर जगह चले जाते हैं, हमने भी कभी पंडाल में सुना था कि भंडारा चलता है तो भोजन करने के लिए आते हैं। हमारा कहना है कि ये भोजन के भूखे नहीं है, ये तो भगवान के भूखे हैं। हमने भी कई कथाएं बिना भोजन के भी की है। बिना सजावट के भी कथा हो जाती है और झाड़ के नीचे भी हो जाती है। जब ऐसे लोग बोलते हैं तो एक नुकसान हो जाता है। कोई नदी-नाला यदि बहकर जाता हो तो ये बोलने वाले डेम बना देते हैं। नदी में बांध बन गया तो कैसे जाएंगे। इस तरह से ऐसे लोग बाधक बनते हैं। इसमें जो जा रहे थे उनका तो नुकसान हो ही रहा है और जो रोक रहे हैं, उनका भी नुकसान हो रहा है।

संतश्री ने कहा कि जब बांध बन जाता है तो ओवरफ्लो पानी के बहाव के लिए बगल में रास्ता बनाया जाता है या नहर बनाई जाती है। नदी कहती है कि मैं नहर बनकर ही निकल आई हूूं। जैसी नदी की नहर होती है, वैसे ही मालिक की मेहर भी होती है। भक्ति के मार्ग में अड़चन आती है तो ईश्वर ही उन्हें दूर करता है।

सम्मान किया-

बागली रियासत के राजा व जटाशंकर सेवा समिति के अध्यक्ष कुं. राघवेंद्र सिंह, विधायक आशीष शर्मा, नगर पंचायत उपाध्यक्ष आरती विपिन शिवहरे, पूर्व उपाध्यक्ष महेंद्र तंवर, रोटी बैंक की सदस्य प्रमिला तंवर, शोभा गोस्वामी आदि ने संत कमलकिशोर नागर एवं एसडीओपी सृष्टि भार्गव का शाल-श्रीफल भेंटकर सम्मान किया। मुंबई से पधारे श्रद्धालु विजय अशोक पुराणिक ने रामलाल की तस्वीर संत कमल किशोर नागर को भेंट की। आयोजक कमलादेवी भार्गव, चंद्रशरण भार्गव ने व्यासपीठ का पूजन किया।

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कथा में ये अनुकरणीय संदेश भी दिए:

– कथा में आत्मा परमात्मा से मिलती है।

– प्रत्येक हिंदू अपने घर पर गाय पाले तो होगा गोरक्षण।

– घर में बड़े-बूढ़े और खेत की मेढ़ पर वृक्ष होना चाहिए।

– दुकान से जरूरत का सामान मिल जाएगा, लेकिन आशीर्वाद नहीं मिलेगा।

– अपने को कभी छोटा मत मानना, आप सौभाग्यशाली है जो कथा में आए हो।

– अगर सुधारना है तो बेटी को सुधारना, बहू को मत। बेटी सुधर गई तो उसी में कल्याण हैै।

– धन की तीन गति दान, भोग एवं नाश। धन की प्रथम गति से धन स्वयं ही धन्य हाे जाता है।

– बड़े लोग समंदर के समान, जो फैलावा इतना अधिक कर लेते हैं कि बाहर निकलने का समय नहीं मिलता।

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