धर्म-अध्यात्म

कोई परेशानी हो ताे भटके नहीं, भटकने से बढ़ता है पाखंड

– परेशानी में भगवान से करों प्रार्थना, भाग्य में लिखा दुख भी पुण्य से होगा दूर

– मालवा के संत कमलकिशोर नागर ने श्रीमद भागवत कथा में दिए अनुकरणीय संदेश

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। अगर कोई परेशानी से गुजर रहे हो तो इधर-उधर मत जाओं। परेशानी में भटकने के बजाए भगवान के पास जाना सही है। भटकने से पाखंड बढ़ता है। स्वयं पर भरोसा नहीं है, हम सही नहीं है और सही को ढूंढते फिरते हैं। भटकने से समय पास होगा और काम भी नहीं होगा। परेशानी में भगवान से प्रार्थना करों, कहाे मैं गलत तो हूं, लेकिन सही होने का प्रयास करूंगा। आप मुझ पर दया करों आप बहुत दयालु हो।

देवास जिले के बेहरी गांव के समीप भोमियाजी मंदिर के पास में श्रीमद भागवत कथा में मालवा के संत पं. कमलकिशोर नागर ने अंत:करण की शुद्धि पर जोर देते हुए ये प्रेरणादायी संदेश दिए। उन्होंने इस दौरान भजन सुनाया मुसाफिर यूं क्यू भटके रे…तो श्रद्धालु अपने आराध्य की भक्ति में लीन हो उठे। संतश्री ने कहा जिसने भाग्य लिखा है, उसने भाग्य लिखते समय बीच-बीच में जगह छोड़ी है। वह जगह इसलिए छोड़ दी कि कभी आपने कोई सत्संग से प्रेरणा लेकर पुण्य किया हो तो वहां पर पुण्य दर्शा दिया जाएगा। भाग्य में लिखे दुख को वह पुण्य दबा देता है।

पैसे पर भरोसा तो पुण्य पर भी कर लों-

धन का उदाहरण देते हुए संतश्री ने कहा कि पैसा होता है तो सारा ऐब या बुराई दब जाती है। जितनी भी कमी है, वह धन से दब जाती है। पैसा लौकिक व्यवहार में बहुत कुछ करता है। ऐसे ही जब पुण्य होता है तो वह पाप को दबा देता है। जब पैसे पर इतना भरोसा कर लिया तो पुण्य पर भी भरोसा कर लों, वह आपके पाप को दबा देगा।

आराध्य का ध्यान चरणों से शुरू करें-

उन्होंने कहा, कि ध्यान अपने आराध्य के चरणों से शुरू करना चाहिए। जीवन में भी नीचे से ऊपर जाने का नियम है। भजन में भी यही ध्यान रखना है। ध्यान से ईश्वर के निकट जाआे। नाम जप करते रहें। जीवन के अंत में नाम बंद हो जाएगा और वह स्वरूप सामने आ जाएगा। हमें केवल नाम संकीर्तन करना है। जो मीरा ने किया, तुकाराम ने किया, नरसिंह मेहता ने किया, नामदेव ने किया।

कुतर्क कर बखेड़ा ना खड़ा करें-

संतश्री ने नाम जाप की महिमा बताते हुए कहा कि आगे धंधा, पीछे धंधा, ऊपर धंधा, नीचे धंधा और इन सब में रहकर जो भजलें वह मालिका का बंदा। नाम जाप से अलग नहीं होना है। अभी स्वरूप नजर नहीं आएगा। यह प्रश्न भी ना करें कि कहां है भगवान, वो इतने दिन से भजन कर रहे हैं, क्या तुमने देखा है भगवान को। कुतर्क कर धर्म में बखेड़ा खड़ा ना करे। सीधी सी बात है जब तक शरीर है हमको भजन करना है।

भजन में ही व्यतीत करें जीवन-

संतश्री ने कहा कि जीवन में शब्द की सख्त जरूरत है और मरण में स्वरूप की सख्त जरूरत है। मरण में शब्द नहीं चलेगा, मरण में स्वरूप चाहिए। जिस स्वरूप का जीवनभर ध्यान किया है। जब नाव मझधार में डूब रही है तो वहां स्वरूप की जरूरत है। संतश्री ने कहा कि जीवन भजन में ही व्यतीत करें। भक्ति को भोगों की प्राप्ति का आधार ना बनाएं। भक्ति का तो हमें मुक्ति में काम लेना है। ज्ञान की बातें सुनते रहें। इस कान से सुुनेंगे और दूसरे कान से निकाल देंगे, ऐसा नहीं है, क्योंकि दोनों कानों के बीच दिमाग भी तो है। अच्छी बातें सुनते रहें, उनका चिंतन करते रहें और बुरी बातों से बचते रहें। इससे अंत:करण की शुद्धि होती है। जो अंत:करण से भजन करता है, उसकी उससे निकटता बढ़ जाती है। कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। कथा में व्यासपीठ का पूजन कथा आयोजक चंद्रशरण भार्गव व कमलादेवी भार्गव ने किया।

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