धर्म-अध्यात्म

कीर्तन करने से मनुष्य के जन्म जन्मांतर के पाप हो जाते हैं नष्ट

  • जब भक्त भगवान की महिमा का गुणगान करते हैं तो इसे ‘कीर्तन’ कहते हैं- आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत
  • आनंद मार्ग प्रचारक संघ का तीन दिवसीय विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन आयोजित

देवास। आनंद मार्ग प्रचारक देवास के भुक्तिप्रधान दीपसिंह तंवर एवं सचिव आचार्य शांतव्रतानंद अवधूत ने बताया, कि आनंद मार्ग प्रचारक संघ का तीन दिवसीय विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन जमालपुर में हुआ। ब्रह्ममुहूर्त में साधक-सधिकाओं ने गुरु सकाश एवं पाञ्चजन्य में बाबा नाम केवलम् का गायन कर वातावरण को मधुमय बना दिया।

साधकों को संबोधित करते हुए संघ के पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने प्रथम आध्यात्मिक उद्बोधन में कहा कि प्रभु के दो पक्ष हैं। एक है निर्गुण और दूसरा है सगुण। भक्तों ने भगवान का नामकरण किया। उसके बाद भगवान ‘नामी’ कहलाए, क्योंकि उनको नाम दिया गया। जब हम किसी को उसके नाम लेकर बुलाते हैं तो भीड़ में भी वही उत्तर देता है। इस प्रकार भगवान कहते हैं भक्तों से कि तुमने मुझे नाम देकर नामी बना दिया। किंतु पहले मैं सर्वशक्तिमान था लेकिन अब तो मैं नामी बन गया। भक्त कहता है ऐसा नहीं है, तुम से तुम हो तभी तो मैं हूं। तुम न होते तो ये कैसे अस्तित्व में आता। भक्त कहता है कि तुम महान हो। भगवान भक्त को महान कहते हैं। जब भक्त भगवान के महिमा का गुणगान करते हैं तो इसे ‘कीर्तन’ कहते हैं। वह गाता है, नाचता है, रोता है, कीर्तन करने के दौरान भक्त का हृदय भक्तिभाव से भर जाता है। क्योंकि परमपुरुष आनन्दधन सत्ता है।

एक पौराणिक कथा का वर्णन कर इस सन्दर्भ को स्पष्ट करते हैं एक बार राम अपने अदम्य भक्त हनुमान से कहते हैं कि क्या तुम यह समुद्र पार कर लंका जा सकते हो क्योंकि मैं यह समुद्र पार नहीं कर सकता। हनुमान कहते हैं कि मैं लंका जा सकता हूं। समुद्र पार कर सकता हूं कैसे? तो हनुमान कहते हैं कि आपका नाम लेकर समुद्र पार कर सकता हूं और ऐसा कहकर समुद्र को पार कर लंका पहुंच जाते हैं। हरि भगवान का नाम है। भगवान भक्तों के पाप को चुपके से हरण कर लेते हैं, इसलिए उन्हें हरि कहा जाता है। यहां वे चौर्य का कार्य करते हैं। वे भक्तों के संस्कारों को चुरा लेते हैं। जैसे-जैसे साधना में मन लगता है कीर्तन का मानव मन के ऊपर धनात्मक प्रभाव होता है। इसलिए सदगुरु श्रीश्री आनंदमूर्तिजी ने ‘बाबा नाम केवलम्’ कीर्तन करने को कहा है। इससे मनुष्य के जन्मोजन्मान्तर के संस्कारगत पाप राशि दग्ध हो जाता है। कहा गया है कि एक बार “बाबा नाम केवलम’ समर्पण भाव से यदि करे तो उसके समस्त पाप राशि नष्ट हो जाएंगे। बाबा नाम’ हरिनाम है। जो इसका जप करता है, वही सबसे ज्यादा बुद्धिमान है।

पुरोधा प्रमुख ने कहा कि मास्टर यूनिट का हर कण ‘ बाबा नाम केवलम्’ की तरंग से छन्दायित हो रहा है। कीर्तन से पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, सजीव व निर्जीव सभी प्रभावित होते हैं। सभी इसका आनंद लेते हैं। जो भी इसे सुनेगा उनका मन पवित्र होगा। महासम्मेलन में आचार्य अनिर्वनानंद अवधूत, आचार्य रामेन्द्रानन्द अवधूत, आचार्य हृदयेश ब्रह्मचारी, आचार्य सुभद्रानंद अवधूत, आचार्य धीरजानंद अवधूत सहित देवास, उज्जैन, इंदौर, सीहोर, भोपाल, होशंगाबाद आदि जिलों के आनंद मार्गियों ने आध्यात्मिक गंगा का लाभ लिया। उक्त जानकारी हेमेंद्र निगम काकू ने दी।

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