धर्म-अध्यात्म

दुनिया की झूठी भीड़ से अलग हटने पर ही प्राप्त हो सकती है शांति- सद्गुरु साहेब मंगल नाम

देवास। रावण की लंका सोने की थी। भगवान राम अगर आदमियों को ले जाते तो सोने की लंका देखकर लोभ स्वरूप रावण के ही गुलाम हो जाते। जो स्वामी भक्त थे, वे झाड़ की पत्ती खाकर संतुष्ट हो जाए उन्हें ही सेना में भर्ती किया गया। साधु-संत, जो रोटी नहीं खाकर उपवास करते, वही राम की सेना, वही सद्गुरु की सेना है।

यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सद्गुरु कबीर आश्रम सर्वहारा सेवा समिति एवं सदगुरु कबीर आश्रम प्रार्थना स्थली चूना खदान की समस्त साध संगत द्वारा कबीर प्रार्थना स्थली प्रताप नगर में आयोजित 13 दिवसीय बसंत महोत्सव के दूसरे दिन रविवार को व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि राम के पास कोई लड़ने का साधन नहीं था। रावण के पास इंद्र का रथ था। रावण रथी, राम बिरथी, राम बिना रथ के थे और रावण के पास रथ था। रामजी नंगे पैर थे। रावण ने कहा राम नंगे पैर और बिना रथ के मेरा क्या मुकाबला करेगा। भगवान राम ने कहा कि मेरे पास सद्गुरु के वचनों का विश्वास है। सद्गुरु मुझे वज्र का बना चुके हैं और रावण अभी चमड़े की देह में बैठा है। गुरु सेवा एक पल की, हरि सेवा युग चार 43 लाख 20 हजार वर्ष तक यह अभेद्य कवच मेरे पास हैं। उन्होंने कहा कि जिसको भी सत्य को जानना है, वह मौन हो जाए। वह दुनिया की झूठी भीड़ से कभी विचलित नहीं होगा। दुनिया की झूठी भीड़ से अलग हटने पर ही शांति मिल सकती है। जिसके पास सत्य उपलब्ध हो जाता है, उसे फिर कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में सद्गुरु कबीर के अनुयायी गुरुवाणी पाठ एवं तत्व बोध चर्चा में शामिल हुए।

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