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    जब तक सद्गुरु की शरण में नहीं जाते, तब तक देह का भेद मालूम नहीं पड़ता- सद्गुरु मंगल नाम साहेब

    ByNews Desk

    Jun 17, 2025
    Mangalnam saheb
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    देवास। संसार भगवन-भगवन पुकारता है लेकिन भगवन को समझता नहीं। भगवन को समझना चाहिए। जो भग के द्वारा देह रूपी वन की रचना की गई है। ज्ञान और कर्म इंद्रियों की रचना, सुख-दुख की रचना। यह महसूस होती है तो सिर्फ ज्ञान और कर्म इंद्रियों के द्वारा होती है। जितने भी शरीर बने हैं भग के द्वारा ही बने हुए हैं।

    यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थली टेकरी पर गुरुवाणी पाठ, गुरु शिष्य चर्चा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि इसमें होती है देह रूपी जंगल की रचना। वन जो है वह 84 लाख योनियों के शरीर हैं। जीव जो है, चैतन्य पुरुष है। इसको प्रेम प्यार में बांधकर नवनीत शरीरों का निर्माण किया गया है।

    इन शरीरों में सुख-दुख सब व्याप्त है। सर्प, नेवले का बेर, चूहा बिल्ली का बेर। ऐसे देह ही देह की बेरी है। जब तक ज्ञान का प्रकाश नहीं होगा तब तक इसी तरह के बेर में उलझते रहेंगे।

    उन्होंने आगे कहा कि सब मेरा, तेरा, कपड़े चमड़े, पद और पदार्थ में उलझ रहे हैं। इससे पार जाने के लिए सद्गुरु ने स्वांस की डोर डाली है। जो स्वर्ग एवं नरक दोनों तरफ पहुंचती है। जो विदेही है वह देह की रचनाओं को जानता है, लेकिन जो देह के जंगल में उलझ गया। वह विदेह की तरफ मुश्किल से जा पाता है। समझ पाता है।

    जब तक सदगुरु से संवाद नहीं होता, सद्गुरु की शरण में नहीं जाते तब तक देह का भेद मालूम नहीं पड़ता है। सद्गुरु की शरण में जाने से ही देह का भेद मालूम पड़ता है। शरीर एक ऐसा वन है, जिसमें एक बार आ गए तो 84 लाख योनियों की यात्रा करना पड़ती है। इन वनों की योनियों की यात्राओं से पार जाने के लिए लोग भगवन-भगवन करते रहते हैं, लेकिन समझते नहीं है कि हम क्या बोल रहे हैं। सद्गुरु के संवाद से ही समझ में आएगा। जिसने भग को धारण किया हुआ है, वही भगवन है। यह जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।