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7 हजार वर्ष पूर्व भगवान सदाशिव ने किया था सरगम का अविष्कार

– आनंदमार्गियों ने क्षिप्रा में मनाया प्रभात संगीत दिवस

देवास। मनुष्य के मन में ईश्वर के लिए उठने वाले हर प्रकार के भाव को सुंदर भाषा और सुर में लयबद्ध करता है प्रभात संगीत। आनंद मार्ग प्रचारक संघ देवास के भुक्ति प्रधान दीपसिंह तंवर एवं डीएस आचार्य शांतव्रतानंद अवधूत ने बताया कि आनंद मार्ग जाग्रति क्षिप्रा में आनंदमार्गियों ने हर्षोल्लास के साथ प्रभात संगीत दिवस मनाया।

इस अवसर पर देवास, इंदौर एवं उज्जैन के साधकगण उपस्थित हुए। आज से लगभग 7 हजार वर्ष पूर्व भगवान सदाशिव ने सरगम का अविष्कार कर मानव मन की सूक्ष्म अभिव्यक्तियों को प्रकट करने का सहज रास्ता खोल दिया था। आचार्य हृदयेश ब्रह्मचारी ने बताया कि इसी कड़ी में 14 सितंबर 1982 को झारखंड के देवघर में आनंद मार्ग के प्रवर्तक भगवान श्रीश्री आनंदमूर्ति जी ने प्रथम प्रभात संगीत बंधु हे! निये चलो बांग्ला भाषा में देकर मानव मन को भक्ति उन्मुख कर दिया। 8 वर्ष 1 महीना 7 दिन की छोटी से अवधि में उन्होंने 5018 प्रभात संगीत का अवदान मानव समाज को दिया। आशा के इस गीत को गाकर कितनी जिंदगियां संवर गई। प्रभात संगीत के भाव, भाषा, छंद, सूर एवं लय अद्वितीय और अतुलनीय है। बांग्ला, उर्दू, हिंदी, अंगिका, मैथिली, मगही एवं अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत प्रभात संगीत मानव मन में ईश्वर प्रेम के प्रकाश फैलाने का काम करता है। संगीत साधना में तल्लीन साधक को एक बार प्रभात संगीत रूपी अमृत का स्पर्श पाकर अपनी साधना को सफल करना चाहिए। इस पृथ्वी पर उपस्थित मनुष्य के मन में ईश्वर के लिए उठने वाले हर प्रकार के भाव को सुंदर भाषा और सूर में लयबद्ध कर प्रभात संगीत के रूप में प्रस्तुत कर दिया। उन्होंने कहा कि कोई भी मनुष्य जब पूर्ण भाव से प्रभात संगीत के साथ खड़ा हो जाता है, तो रेगिस्तान भी हरा हो जाता है। संगीत तथा भक्ति संगीत दोनों को ही रहस्यवाद से प्रेरणा मिलती रहती है। जितनी भी सूक्ष्म तथा दैवी अभिव्यक्तियां हैं, वह संगीत के माध्यम से ही अभिव्यक्त हो सकती है। मनुष्य जीवन की यात्रा विशेषकर अध्यात्मिक पगडंडियां प्रभात संगीत के सूर से सुगंधित हो उठता है। आजकल प्रभात संगीत एक नए घराने के रूप में लोकप्रिय हो रहा है। उक्त जानकारी हेमेन्द्र निगम ने दी।

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