बूंद समुद्र में समा जाती है, वैसे ही जीव परमात्मा में समा जाता है- सद्गुरु मंगल नाम साहेब

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देवास। श्वास जब तक चल रही है तो हमारा ध्यान नहीं है। ध्यान जब श्वास पर जाएगा, सब आवरण खत्म हो जाएंगे। तब ममता रूपी रात्रि समाप्त हो जाएगी। मेरी मां, यह मेरी बहन है, मेरा चमड़ा है, मेरा कपड़ा सब भूल जाओंगे। स्वयं प्रकाश ही प्रकाश, तू ही तू। जितने भी बीच में सब हट जाते हैं। जैसे बूंद समुद्र में समा जाती है, वैसे ही जीव परमात्मा में समा जाता है।
यह विचार सद्गुरु मंगलनाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थलीय सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरु-शिष्य चर्चा में व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा, कि भीड़ में कोई साधना नहीं होती। वहां तो स्वर की ही साधना हो सकती है। जिसे हम सर्वोदय विधान कहते हैं, जो अखंड विधान है। तुम कहीं पर भी खड़े हो वह अखंड है। बिना बदले ही अपनी सांस बदल जाएगी। जो व्यवहार है उसके साथ स्वर हैं। बोल देते हैं लोग पवन तनय संकट हरण, लेकिन अगर आपके सामने कोई डंडा लेकर खड़ा हो जाए तो आपकी सांसे फूल जाती है। पवन तनय, पवन पूरे तन में भर जाती है सांस फूल कर कुप्पा हो जाती है। पवन से पूरा तन भर जाता है मुकाबला करने के लिए। जैसे ऊंचाई पर चढ़ोगे तो सांस फूलती है। सांस ऊंचाई का मुकाबला करने के लिए फूलती है।
परमात्मा तुम्हारी ही आंखों से देख रहा है। तुम जब दर्पण के सामने जाते हो तो जैसा तुम्हारा रूप वैसा ही दिखाता है। दर्पण  निर्मल है। दर्पण ईमानदार के लिए ईमानदार और बेईमान के लिए बेईमान का रूप दिखा देता है। तुम्हारी नाक में ही सुरगुरु है जो करोड़ों जन्मों से तुम्हारे साथ है, लेकिन तुमने कभी पलट कर नहीं देखा। चमड़े, कपड़े, पद, पदार्थ, ज्ञान और कर्म इंद्रियों को भोगने में लगे हो। सत्य को जिस दिन तुम स्वीकार करोंगे। उस दिन तुम स्वयं परमात्मा हो जाओंगे। इस दौरान सद्गुरु मंगल नाम साहब का साध-संगत ने शाल, श्रीफल भेंटकर पुष्पमाला से सम्मान किया। यह जानकारी सेवक राजेन्द्र चौहान ने दी।

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