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भोमियाजी मंदिर परिसर में 41 जोड़े बंधे विवाह बंधन में

  • सनातन पद्धति से संपन्न हुए विवाह

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। भोमियाजी मंदिर परिसर में 41 जोड़े सर्वजातीय वर-वधु के रूप में एक-दूसरे के साथी बने। इस सम्मेलन में कुछ जोड़े आदिवासी समुदाय से भी शामिल रहे। आदिवासी परंपरा के अनुसार उनके समाज में देवी-देवताओं को पूजते हुए शादी संस्कार संपन्न हुआ। इस दौरान वर एवं वधू पक्ष विशेष प्रकार का सेहरा बांधते हैं। कुल के देवी देवताओं की पूजा करने का तरीका भी अलग रहता है।

भोमियाजी मंदिर में आयोजित विवाह समारोह में अनूठा संगम देखने में आया। सामाजिक तौर तरीके के साथ आदिवासी जोड़ों का सनातन परंपरा से भी अग्नि के फेरे लेकर विवाह संपन्न कराया गया। इस दौरान आसपास के क्षेत्र से 10 से अधिक जोड़े आदिवासी समुदाय से आए थे। इन परिवारों ने घर पर भी अपनी संस्कृति अनुरूप लोक देवताओं की पूजा की। इसी पूजा में शामिल वर एवं वधू का मोर मुकुट भी शामिल रहता है, जो बांस एवं अन्य वन संपदा से बनाया जाता है। एक जोड़ा ऐसा भी शामिल रहा जो क्षेत्र का ही था और उन्होंने लव मैरिज करने का फैसला लिया। परिजनों की मर्जी से उस जोड़े को भी इस विवाह समारोह में शामिल किया गया। बागली नगर से जुड़े माली समाज के मुकेश नायक की उम्र 50 वर्ष है, उन्होंने भी इस सम्मेलन में अपनी नई जिंदगी शुरू की।

मुख्य जजमान के रूप में पं. कनिष्क द्विवेदी, मंडल अध्यक्ष महेंद्रसिंह टिकैत, अधिवक्ता मुकेश गुर्जर, सत्यनारायण व्यास, नरेंद्र सोरठ सहित मातृशक्ति की शोभा गोस्वामी, मंजू यादव उपस्थित रहीं। लगातार तीसरे वर्ष निशुल्क कन्यादान सम्मेलन आयोजित करने वाले अंबाराम पाटीदार ने बताया कि सभी परिजनों में जिनके यहां विवाह संस्कार संपन्न हुआ है, उनकी खुशी साफ दिखाई दे रही थी।

आदिवासी नेता नंदू सिंह रावत एवं नाहर सिंह मुजाल्दे ने बताया कि पहले आदिवासी परिवारों में विवाह पद्धति उनकी संस्कृति के अनुसार संपन्न होती थी लेकिन अब धीरे-धीरे सनातन परंपरा भी इसमें शामिल हो गई है। पं. कनिष्क द्विवेदी ने बताया, कि भारतीय समाज शास्त्र के अनुसार विवाह आठ प्रकार के होते हैं। नारद पुराण के अनुसार, सबसे श्रेष्ठ प्रकार का विवाह ब्रह्म ही माना जाता है। इसके बाद दैव विवाह और आर्य विवाह को भी बहुत उत्तम माना जाता है। उसमें आर्य विवाह उत्तम माना जाता है और वही अब सभी और निर्वहन हो रहा है।

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