देवास। आज जब पूरा विश्व पर्यावरण संकट से जूझ रहा है, तब गांव के एक साधारण किसान ने असाधारण कार्य कर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। देवास जिले के एक छोटे से गांव छोटी चुरलाई में रहने वाले धर्मेंद्रसिंह राजपूत, न केवल खेती को जीवन का आधार मानते हैं, बल्कि प्रकृति से गहरा जुड़ाव भी रखते हैं। कुछ ही वर्षों में उन्होंने पर्यावरण संरक्षण में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
प्रकृति की रक्षा कोई अभियान नहीं, बल्कि जीवनशैली होनी चाहिए और धर्मेंद्रसिंह राजपूत इसका जीता-जागता प्रमाण है। उन्होंने हरियाली का सपना, खुद के हाथों से साकार किया है।
उल्लेखनीय है कि धर्मेंद्र ने 10 वर्ष पहले यह संकल्प लिया था कि वे अपने खेत को सिर्फ फसल उगाने की जगह नहीं बनाएंगे, बल्कि उसे हरियाली का केंद्र बनाएंगे। उन्होंने अपने खेत की सूनी मेढ़ों को हरियाली में बदलने का बीड़ा उठाया था।
अब तक वे 150 से अधिक पौधे अपने खेत की मेढ़ों और आसपास के हिस्सों में लगा चुके हैं, जिनमें से कई अब घने पेड़ बनकर खड़े हैं। ये पेड़ न केवल छांव और ताजगी दे रहे हैं, बल्कि फल और पक्षियों को आश्रय भी प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने नीम, आम, जामुन, चीकू, सीताफल, बेल और करंज जैसे स्थानीय व फलदार प्रजातियों को प्राथमिकता दी, जिससे न केवल पर्यावरण को लाभ मिला, बल्कि भूमि की उर्वरता में भी सुधार आया।
गर्मी के दिनों में करते हैं विशेष देखभाल-
धर्मेंद्र कहते हैं, गर्मी में पौधों को बच्चा समझकर देखना पड़ता है। उन्हें नियमित पानी देना, घासफूस से जड़ें ढंकना और समय-समय पर निरीक्षण करना जरूरी होता है। उनकी देखरेख और प्रेम का ही नतीजा है कि आज उनके खेत में लगे पेड़ पूरी तरह हरेभरे, स्वस्थ और सुंदर दिखाई दे रहे हैं।
सुनाई देती है पक्षियों की चहचहाहट-
इन पेड़ों ने केवल हरियाली ही नहीं दी, बल्कि पक्षियों को भी नया घर भी दिया है। उनके खेत में अब तोते, बुलबुल, कोयल, मैना और कई अन्य स्थानीय पक्षी नियमित रूप से आते हैं। सुबह होते ही पक्षियों की चहचहाहट से खेत जीवंत हो उठता है। धर्मेंद्र कहते हैं पक्षियों की उपस्थिति से मुझे शांति मिलती है, और लगता है जैसे प्रकृति से मैं बातचीत कर रहा हूं।
पर्यावरण रक्षक-
कुछ साल पहले जब उनके खेत की मेढ़ें उजाड़ थीं, तो तेज़ धूप में खेत की मिट्टी तपती थी, नमी उड़ जाती थी और फसलें भी जल्दी मुरझा जाती थीं। लेकिन पेड़ों की छांव और उनकी जड़ों से बनी हरियाली ने अब उस समस्या को काफी हद तक समाप्त कर दिया है।
इन पेड़ों ने मिट्टी के कटाव को रोका, नमी बनाए रखी और जैव विविधता को बढ़ावा दिया। आज यह खेत न केवल एक सफल किसान की मेहनत का परिणाम है, बल्कि प्राकृतिक संतुलन का जीता-जागता उदाहरण बन गया है।
प्रेरणा बन रहे हैं आस-पास के लिए-
धर्मेंद्र की इस पहल से अब गांव के कई अन्य किसान भी प्रेरित हो रहे हैं। वे भी अपनी मेढ़ों और खेतों में पौधे लगाने के लिए आगे आ रहे हैं। धर्मेंद्र उन्हें पौधे लगाने की सलाह, प्रजातियों का चुनाव और देखभाल की विधियां भी बताते हैं।
हर खाली जगह को भरना है हरियाली से-
धर्मेंद्र का संकल्प केवल अपने खेत तक सीमित नहीं है। वे कहते हैं, जहां भी मुझे खाली जमीन दिखेगी, वहां पौधे लगाऊंगा। यह मेरी जिम्मेदारी है, सिर्फ सरकारी योजना या अभियान की बात नहीं। उनका सपना है कि आने वाली पीढ़ियों को एक हरा-भरा, स्वच्छ और शांत वातावरण मिले।
पुरस्कार नहीं, संतोष चाहिए-
जहां आज कई लोग सोशल मीडिया पर पौधे लगाकर लाइक और शेयर बटोरते हैं, धर्मेंद्र चुपचाप अपने काम में लगे हुए हैं। वे किसी पुरस्कार या प्रचार की लालसा नहीं रखते। उन्हें सच्चा सुख तब मिलता है, जब कोई पौधा बड़ा होकर पेड़ बनता है और उसमें पहला फल या पहला पक्षी बैठता है।

धर्मेंद्र सिंह राजपूत का यह प्रयास न केवल पर्यावरण संरक्षण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि अगर एक किसान अपने स्तर पर इतना कुछ कर सकता है, तो हम शहरी लोग क्यों नहीं? क्या हम भी आंगन, गली या पार्क में एक पौधा नहीं लगा सकते?





