उपासना में सफलता हमारे चिंतन, चरित्र और व्यवहार पर निर्भर है- नागर भाईजी

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टोंकखुर्द (विजेंद्रसिंह ठाकुर)। अंतरंग और बाह्य जीवन में जितनी पवित्रता और प्रखरता का समावेश होगा, उतनी ही मात्रा में पूजा और उपासना का परिणाम आएगा।

यह विचार ग्राम पाड़ल्या में आयोजित एक दिवसीय अमृतवाणी सत्संग में श्रीराम शरणम के इंद्रसिंह नागर भाईजी ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि उपासना में सफलता हमारे चिंतन, चरित्र और व्यवहार पर निर्भर है, इसलिए पूजा और भक्ति को तमाम मलिनताओं से बचाना होगा। आचार-विचार, आहार-विहार,भक्ष-अभक्ष का ध्यान रखना होगा।

स्वामी सत्यानंदजी महाराज ने कहा है, कि मनमानी करो और सिद्ध होना चाहे यह कदापि नहीं हो सकता। पूजा-पाठ, भक्ति कोई जादू नहीं यह विशुद्ध विज्ञान है। इसके लिए शुद्धि की जरूरत है, साधना की जरूरत है और श्रद्धा की जरूरत है। नाम सिमरन आत्म कल्याण का सर्वश्रेष्ठ और सरल मार्ग है। जिसके पास राम नाम का पारस है उसका परम कल्याण हो जाता है। राम नाम पारस अहे मन है मैला लोह, परसत ही कंचन भया छूटा बंधन मोह। राम मंदिर जाने की अगर कोई सीढ़ी है, तो वह राम नाम है, जिसके द्वारा हम राम तक पहुंच सकते हैं। कार्यक्रम में अमृतवाणी का पाठ हुआ। मधुर भजनों पर श्रोता झूम उठे।

ग्राम पाड़ल्या के साधकों ने कार्यक्रम में आए सभी साधकों का आभार माना। यह जानकारी श्रीराम शरणम् के प्रादेशिक प्रचार प्रमुख डॉ. सुरेश गुर्जर ने दी।

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