खेत-खलियान

महुआ एवं तेंदूपत्ता संग्रहण के लिए हुए थे गांव खाली, अब फिर से लौटी रौनक

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)।
बेहरी के आसपास की 7 ग्राम पंचायतों में, जिनमें 5 ग्राम पंचायत आदिवासी बाहुल्य होकर जंगल से सटी हुई है। यहां पर आदिवासी परिवार निवास करते हैं। कई परिवार दूर-दराज से इनके यहां मेहमान के रूप में आकर महुआ संग्रहण एवं तेंदूपत्ता तुड़वाई में सहयोग करते हैं। इसके चलते उनके गांव सुने-सुने हो जाते हैं।

वर्तमान में तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य भी पूर्ण हो चुका है, वहीं महुआ संग्रहण कार्य भी पूर्ण हो चुका है। यह काम करने के बाद मजदूर वर्ग के परिजन एवं मेहमान अपने-अपने घरों की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। उन गांवों में जहां विगत 1 माह से सुनसानी छाई थी, उन गांवों में फिर से रौनक लौट आई है। अकेले रामपुरा क्षेत्र में 200 से अधिक मजदूर परिवार अन्य क्षेत्र से महुआ बीनने और तेंदूपत्ता संग्रहण करने आए थे, जो परिवार मजदूरी करने गुजरात सहित इंदौर, उज्जैन, रतलाम चले गए थे, वह भी एक माह के लिए अपने परिजनों से मिलकर काम में सहयोग बटाने आ गए थे। धीरे-धीरे सब अपने-अपने घर की ओर प्रस्थान कर रहे हैं।

गौरतलब है कि 5 ग्राम पंचायतों में महुआ भी क्विंटलों से एकत्रित किया जाता है, लेकिन यहां का एकत्रित महुआ यही के आदिवासी परिवार शराब बनाने के काम में ले लेते हैं। पूर्ति कम होने की स्थिति में बाहर से भी खरीदी करते हैं। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि क्षेत्र में महुआ खरीदी केंद्र ना होना भी इसकी बड़ी वजह है। यहां पर महुआ खरीदी केंद्र हो तो आदिवासी परिवार भी महुआ बेच सके, लेकिन मजबूरी में महुआ नहीं बिकने की स्थिति में घर में ही काम में लिया जाता है।

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