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लामा ने 64वें तिब्बती विद्रोह दिवस के मौके पर अपने संबोधन में कहा, “ मेरा देश, उनका देश, मेरा धर्म, उनका धर्म कहना और इस आधार पर लड़ना और मारना सरासर गलत है। हम पीढ़ियों से, एक दूसरे को मारने के लिए इन हथियारों का इस्तेमाल करते रहे हैं। अब, मुझे लगता है कि हमें कहना चाहिए कि बहुत हो चुका।”
आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने दुनिया में धर्म के आधार पर हिंसा को समाप्त करने का शुक्रवार को आह्वान किया।
लामा ने 64वें तिब्बती विद्रोह दिवस के मौके पर अपने संबोधन में कहा, “ मेरा देश, उनका देश, मेरा धर्म, उनका धर्म कहना और इस आधार पर लड़ना और मारना सरासर गलत है। हम पीढ़ियों से, एक दूसरे को मारने के लिए इन हथियारों का इस्तेमाल करते रहे हैं। अब, मुझे लगता है कि हमें कहना चाहिए कि बहुत हो चुका।”
उन्होंने कहा, “ जब मैं छोटा था और दूसरे बच्चों के साथ खेलता था, तो मुझे उनके धर्म और राष्ट्रीयता के बारे में कोई जानकारी नहीं होती थी।”
सात-आठ अरब की आबादी वाली दुनिया में एकता का आह्वान करते हुए आध्यात्मिक नेता ने कहा, “ हम एक ही मानव हैं और हमें इस ग्रह पर भाइयों और बहनों के रूप में रहना चाहिए।”
धर्मशाला में स्थित निर्वासित तिब्बती संसद ने एक बयान में कहा, “ चीन की सरकार वर्षों से तिब्बत की संस्कृति और पहचान को मिटाने की कोशिश कर रही है। यहां तक कि उन्होंने पर्यावरण को भी नष्ट कर दिया है। लेकिन तिब्बती लोगों ने कभी हार नहीं मानी है। वे शांतिपूर्वक विरोध करते हैं और अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं।”
बयान में कहा गया है कि इस दिन 1959 में चीनी सरकार ने तिब्बत की राजधानी लहासा पर हमला किया था और दलाई लामा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी। उसमें कहा गया है कि तिब्बत के लोग इसे बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने विरोध किया।
Disclaimer:प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।
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