देश-विदेश

चीनी कंपनियों के बढ़ते प्रभाव के बीच ‘वोकल फॉर लोकल’ की फिर जरूरत: हर भारतीय को बदलनी होगी सोच

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भारत में स्मार्टफोन से लेकर स्मार्ट टीवी तक, और ड्रोन से लेकर इलेक्ट्रिक वाहन तक आज हर सेक्टर में चीनी कंपनियों का वर्चस्व है।

VIVO, OPPO, Xiaomi, OnePlus, Huawei, Lenovo, Realme जैसी कंपनियां भारतीय बाजार में न केवल भारी मुनाफा कमा रही हैं, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था से अरबों डॉलर हर साल चीन भेज रही हैं।

इन कंपनियों के उत्पाद किफायती होने के कारण आम आदमी के लिए लुभावने जरूर हैं, लेकिन इसका बड़ा नुकसान यह हो रहा है कि भारतीय कंपनियां पीछे छूट रही हैं और देश की अर्थव्यवस्था बाहरी ताकतों पर निर्भर होती जा रही है।

चीनी कंपनियों का दबदबा-
स्मार्टफोन सेक्टर में Xiaomi, Realme, Vivo और Oppo की बाजार में हिस्सेदारी से बहुत अधिक है।

लैपटॉप और कंप्यूटर मार्केट में Lenovo एक बड़ी हिस्सेदार कंपनी है।

टीवी और अप्लायंसेज में TCL, Hisense और Haier जैसे ब्रांड भारत के बड़े बाज़ार पर कब्ज़ा कर चुके हैं।

ऑटोमोबाइल सेक्टर में BYD और Haima जैसी चीनी कंपनियां भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के जरिए जड़ें जमाने की तैयारी में हैं।

भारतीय विकल्प भी हैं, लेकिन हमें उन्हें चुनना होगा-
भारत में भी कई ऐसी कंपनियां हैं जो गुणवत्ता और नवाचार के मामले में किसी से पीछे नहीं हैं। लेकिन उपभोक्ता जब तक “Made in India” को प्राथमिकता नहीं देगा, तब तक ये कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगी।

कुछ प्रमुख भारतीय ब्रांड:

स्मार्टफोन में: Lava, Micromax, Karbonn

इलेक्ट्रॉनिक्स में: Dixon Technologies, BPL, Videocon (पुनः सक्रिय होने की ओर)

ऑडियो व स्मार्ट गैजेट्स में: boAt, Noise, Mivi

ऑटो सेक्टर में: Tata Motors, Mahindra, TVS, Ola Electric

सॉफ़्टवेयर व टेक्नोलॉजी: Zoho, Infosys, HCL

ये कंपनियां न केवल भारत में रोजगार के अवसर पैदा करती हैं, बल्कि इनके मुनाफ़े से भारत का टैक्स राजस्व बढ़ता है, जिससे देश का इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत होती हैं।

सिर्फ सस्ता नहीं, सही भी चुनिए-
चीनी कंपनियों की रणनीति होती है, शुरू में सस्ता सामान देकर बाजार पर कब्जा करना और बाद में कीमतें बढ़ाना। इसके उलट, भारतीय कंपनियां सीमित संसाधनों के बावजूद गुणवत्ता बनाए रखती हैं और देशहित में कार्य करती हैं।

समय आ गया है कि उपभोक्ता कीमत से ज़्यादा “मूल्य” को समझे—कौन-सा ब्रांड देश को मजबूत बना रहा है?

अब जरूरी है एक नई सोच, एक नया कदम-
आज जब देश सीमाओं पर सतर्क है, तो आंतरिक रूप से भी मजबूती की जरूरत है। आत्मनिर्भर भारत का सपना केवल सरकार का नहीं, हर नागरिक का कर्तव्य है। हर बार जब हम बाजार से कोई मोबाइल, टीवी, गाड़ी या ईयरफोन खरीदते हैं, तब हमारा छोटा-सा निर्णय देश की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर डालता है।

चीन: आर्थिक साझेदार या रणनीतिक शत्रु?
सामाजिक कार्यकर्ता शिवम धाकड़ का कहना है चीन लगातार पाकिस्तान को सैन्य, तकनीकी और आर्थिक मदद देता आ रहा है। चाहे हथियार हों, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स हों या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन चीन बार-बार पाकिस्तान का पक्ष लेकर भारत के हितों को चोट पहुंचाता है।

इतना ही नहीं, भारत-चीन सीमा पर तनाव कोई नई बात नहीं है। लद्दाख की गलवान घाटी से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक, चीन ने कई बार भारत की संप्रभुता को चुनौती दी है।

उन्होंने कहा ऐसे में जब हम चीन की कंपनियों से सामान खरीदते हैं, तो अनजाने में उसी देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे होते हैं जो हमारे सैनिकों के सामने खड़ा है। जो पैसा भारतीय नागरिक चीनी कंपनियों को देते हैं, वही संसाधन चीन अपने सैन्य विस्तार और रणनीतिक गठबंधनों के लिए इस्तेमाल करता है।

अब जरूरी है एक नई सोच, एक नया कदम-
आज जब देश सीमाओं पर सतर्क है, तो आंतरिक रूप से भी मजबूती की ज़रूरत है। हर बार जब आप फोन या टीवी खरीदते हैं, सोचिए, वो पैसा किसके पास जा रहा है और वो किसके खिलाफ इस्तेमाल हो सकता है।

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