धर्म-अध्यात्म

आनंद नगर आनंदमार्गियों की बृजभूमि है- विश्वदेवानंद अवधूत


देवास। आनन्द मार्ग प्रचारक संघ देवास के दीपसिंह तंवर एवं हेमेन्द्र निगम ने बताया कि आनंदपूर्णिमा के उपलक्ष्य पर आयोजित आनंदनगर में आनंद मार्ग का त्रिदिवसीय धर्म महासम्मेलन 3, 4 एवं 5 जून को आयोजित हो रहा है। प्रथम दिन के कार्यक्रम का शुभारंभ प्रात: 05 बजे पांचजन्य से हुआ। देश व विदेश के दूरदराज से आनंदमार्गी साधक बड़ी संख्या में आ चुके हैं व आने का सिलसिला जारी है।

आचार्य ह्रदयेश ब्रह्मचारी ने बताया कि आज दिन के 11बजे श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने अपने प्रथम आध्यात्मिक उद्बोधन में सर्वोच्च धाम वक्तव्य रखते हुए कहा कि अनेक धामों यथा गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ धाम है, उसी प्रकार एक धाम है बैकुंठ धाम, जहां किसी भी प्रकार की कोई संकोचन ना हो कुंठा ना हो अर्थात जहां किसी भी प्रकार की कोई संकुचित चिंता ना हो। उन्होंने कहा कि यह कुंठाएं मानसिक होती है, कुछ विशेष प्रकार की कुंठाएं हैं हीनमान्यता और महा मान्यता जो परम पुरुष से मनुष्य को अलग रखता है। बैकुंठ मन की वह अवस्था है जहां ना तो हीनमान्यता है और ना ही महामान्यता है। यह कहां है? जब परम पुरुष की गोद में पहुंचकर मनुष्य इन कुंठाओं से मुक्त होकर परम आत्मीय ईश्वर प्रेम की अनुभूति लाभ करता है, बैकुंठ कहलाता है। संस्कृत शब्द ब्रजति की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि ब्रजति मने आनंद लेते हुए चलना। आनंदनगर आनंदमार्गियों के लिए ब्रजभूमि है, यहां आकर साधक आनंद की अनुभूति करते हुए कीर्तन करते हैं, साधना करते हैं। तब मन आनंद तरंगों में तरंगायीत रहता है, क्योंकि बाबा हरि उनके मन में बस जाते हैं। हरि रूप में भक्तों के मन में व्याप्त कुंठित विचारों को हरण कर लेते हैं और परम आनंद की अनुभूति कराते हैं। उन्होंने कहा कि एक बार बाबा ने आनंदनगर में कहा था कि यहां मेरी बेटियां संकोच रहित रहती है। साधकों को चाहिए कुंठा रहित होकर कीर्तन करें, बाबा भाव में रहे। दिन-रात कीर्तन करें, यह हम सबका ब्रजभूमि आनंदनगर है।

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