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भगवान राम ने अपने वनवास काल में समाज को एकता के सूत्र में पिरोने का काम पूरे कौशल के साथ किया। समाज की संग्रहित शक्ति के कारण ही भगवान राम ने आसुरी प्रवृति पर प्रहार किया। समाज को निर्भयता के साथ जीने का मार्ग प्रशस्त किया।
प्रायः कहा जाता है कि जीवन हो तो भगवान श्रीराम जैसा। जीवन जीने की उच्चतम मर्यादा का पथ प्रदर्शक भगवान श्रीराम के जीवन पर दृष्टिपात करेंगे तो निश्चित ही हमें कई पाथेय दिखाई देंगे, लेकिन इन सबमें सामाजिक समरसता का आदर्श उदाहरण कहीं और दिखाई नहीं देता। अयोध्या के राजा श्रीराम ने अपने जीवन से अनुशासन और विनम्रता का जो चरित्र प्रस्तुत किया, वह आज भी समाज के लिए एक दिशाबोध है।
वनवासी राम का सम्पूर्ण जीवन सामाजिक समरसता का अनुकरणीय पाथेय है। श्रीराम ने वनगमन के समय प्रत्येक कदम पर समाज के अंतिम व्यक्ति को गले लगाया। केवट के बारे में हम सभी ने सुना ही है, कि कैसे भगवान राम ने उनको गले लगाकर समाज को यह संदेश दिया कि प्रत्येक मनुष्य के अंदर एक ही जीव आत्मा है। बाहर भले ही अलग दिखते हों, लेकिन अंदर से सब एक हैं। यहां जाति का कोई भेद नहीं था। वर्तमान में जिस केवट समाज को वंचित समुदाय की श्रेणी में शामिल किया जाता है, भगवान राम ने उनको गले लगाकर सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया है। सामाजिक समरसता के भाव को नष्ट करने वाली जो बुराई आज दिखाई दे रही है, वह पुरातन समय में नहीं थी। समाज में विभाजन की रेखा खींचने वाले स्वार्थी व्यक्तियों ने भेदभाव को जन्म दिया है।
वर्तमान में हम स्पष्ट तौर पर देख रहे हैं कि समाज को कमजोर करने का सुनियोजित प्रयास किया जा रहा है, जिसके कारण जहां एक ओर समाज की शक्ति तो कमजोर हो रही है, वहीं देश भी कमजोर हो रहा है। वर्तमान में राम राज्य की संकल्पना को साकार करने की बात तो कही जाती है, लेकिन उसके लिए सकारात्मक प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। सामाजिक एकता स्थापित करने के लिए रामायण हम सभी को उचित मार्ग दिखा सकती है।
यह भी सर्वविदित है कि राम वन गमन के दौरान भगवान राम ने निषाद राज को भी गले लगाया, केवट को भी पूरा सम्मान दिया। इतना ही नही भगवान राम ने उन सभी को अपना अंग माना जो आज समाज में हेय दृष्टि से देखे जाते हैं। इसका यही तात्पर्य है कि भारत में कभी भी जातिगत आधार पर समाज का विभाजन नहीं था। पूरा समाज एक शरीर की ही तरह था। जैसे शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द होता है, तब पूरा शरीर अस्वस्थ हो जाता था। इसी प्रकार समाज की भी अवधारणा है, समाज का कोई भी हिस्सा वंचित हो जाए तो सामाजिक एकता की धारणा समाप्त होने लगती है। हमारे देश में जाति आधारित राजनीति के कारण ही समाज में विभाजन के बीजों का अंकुरण किया गया। जो आज एकता की मर्यादाओं को तार-तार कर रहा है।
भगवान राम ने अपने वनवास काल में समाज को एकता के सूत्र में पिरोने का काम पूरे कौशल के साथ किया। समाज की संग्रहित शक्ति के कारण ही भगवान राम ने आसुरी प्रवृति पर प्रहार किया। समाज को निर्भयता के साथ जीने का मार्ग प्रशस्त किया। इससे यही शिक्षा मिलती है समाज जब एक धारा के साथ प्रवाहित होता है तो कितनी भी बड़ी बुराई हो, उसे नत मस्तक होना ही पड़ता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो संगठन में ही शक्ति है। इससे यह संदेश मिलता है कि हम समाज के साथ कदम मिलाकर नहीं चलेंगे तो हम किसी न किसी रुप में कमजोर होते चले जाएंगे और हमें कोई न कोई दबाता ही चला जाएगा। सम्पूर्ण समाज हमारा अपना परिवार है। कहीं कोई भेदभाव नहीं है। जब इस प्रकार का भाव बढ़ेगा तो स्वाभाविक रुप से हमें किसी भी व्यक्ति से कोई खतरा भी नहीं होगा। आज समाज में जिस प्रकार के खतरे बढ़ते जा रहे हैं, उसका अधिकांश कारण यही है कि समाज का हिस्सा बनने से बहुत दूर हो रहे हैं। अपने जीवन को केवल भाग दौड़ तक सीमित कर दिया है। यह सच है कि व्यक्ति ही व्यक्ति के काम आता है। यही सांस्कृतिक भारत की अवधारणा है।
पूरे विश्व में भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रुप में पहचाना जाता है, जब हम भारत को राष्ट्र बोलते हैं, तब हमें इस बात का बोध होना ही चाहिए कि राष्ट्र आखिर होता क्या है? हम इसका अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा कि राष्ट्र की एक संस्कृति होती है, एक साहित्यिक अवधारणा होती है, एक आचार विचार होता है, एक जैसी परंपराएं होती हैं। भगवान राम के जीवन में इन सभी का साक्षात दर्शन होता है, इसलिए कहा जा सकता है कि राम जी केवल वर्ग विशेष के न होकर सम्पूर्ण विश्व के हैं। उनके आदर्श हम सभी के लिए हैं। हमें राम जी के जीवन से प्रेरणा लेकर ही अपने जीवन को उत्सर्ग के मार्ग पर ले जाने का उपक्रम करना चाहिए।
इस लेख का तात्पर्य यही है कि राम जी के जीवन का दर्शन हमारे सामाजिक जीवन के उत्थान के लिये अत्यंत ही प्रासंगिक इसलिए भी है क्योंकि वर्तमान में हम देख रहे हैं कि कुछ स्वार्थी राजनीतिक तत्व अपना हित साधने के लिये समाज में फूट पैदा करने का प्रयास करते हैं। समाज की फूट का दुष्परिणाम हमारे देश ने भोगा है। भारत इसी फूट के कारण ही वर्षों तक गुलाम बना। आज भी देश में लगभग वैसी ही स्थिति है। जो काम पहले अंग्रेज करते थे, वह काम आज राजनीतिक दल कर रहे हैं। हमें आज पुनः सामाजिक एकता के प्रयासों को गति प्रदान करने होगी, तभी हमारा देश शक्तिशाली होगा।
– डॉ. वन्दना सेन, सहायक प्राध्यापक
पीजीवी साइंस कॉलेज, जीवाजीगंज
लश्कर ग्वालियर मध्यप्रदेश
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