Gyan Ganga: शुक की बात सुनकर रावण का मन आखिर क्यों डोल गया था?

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शुक ने इतने नाम गिनवाने के पश्चात कहा, कि वे सब योद्धा सुग्रीव के बल के समान हैं। शुक ने जब कहा, कि वे सब वानर राजा सुग्रीव के बल के समान हैं। तो निश्चित ही रावण का मन डोल गया होगा। कारण कि अकेले सुग्रीव में दस हजार हाथियों का बल था।

शुक अपने जीवन की सबसे कठिनतम घड़ी से लाँघ रहा था। कारण कि रावण उसके मुख से पूछना चाह रहा था कि श्रीराम जी का बल व आगामी योजनायें क्या-क्या हैं। ऐसे में शुक को यह निर्णय करना था कि वह रावण को श्रीराम जी की वास्तविक स्थिति से अवगत करवाये, अथवा रावण के झूठे बल व छल की, मिथ्या व निराधार महिमा गाकर अपने प्राणों की रक्षा करे। लेकिन कहते हैं न, कि जिनके मुख को मिशर की डलियों का स्वाद लग जाये, वे नमक की डलियों पर लार थोड़ी न टपकाते हैं। शुक को श्रीराम जी के श्रीचरणों के शहद की मिठास का चसका लग चुका था। फिर भला वह रावण के मलिन चरणों की मैल पर क्योंकर न्यौछावर होता? उल्टे शुक ने तो अपनी यह सेवा समझी, कि वह श्रीराम जी की महिमा रावण को सुना कर, उसे सद्मार्ग पर लाने का प्रयास करेगा। लेकिन शुक ने सोचा, कि रावण को समझाने के पहले भी तो कितने प्रयास हो चुके हैं। श्रीहनुमान जी, श्रीविभीषण जी व कितनों ने ही, प्रेम से रावण को समझाने का प्रयास किया। लेकिन हुआ क्या? परिणाम तो शून्य ही निकला। तो क्यों न मैं कुछ अलग प्रयास से समझाने का प्रयत्न करूँ। निश्चित ही इसलिए मैं पहले श्रीराम जी की महिमा नहीं गाऊँगा, अपितु वानर सेना की महिमा गाऊँगा। रावण श्रीराम जी के सैन्य बल व उनकी नीतियों का आँकलन जानना चाहता है न? तो उसे मैं इसी आधार पर पहले डराने का प्रयास करता हूँ-

‘पूँछिहु नाथ राम कटकाई।

बदन कोटि सत बरनि न जाई।।

नाना बरन भालु कपि धारी।

बिकटानन बिसाल भयकारी।।’

शुक ने कहा, कि हे नाथ आपने वानर सेना के बल की पूछी, तो सुन लीजिए, वह तो करोड़ों मुखों से भी नहीं गाई नहीं जा सकती। अनेकों रंगों के भालू और वानरों की सेना है। जोकि अतिअंत ही भयंकर मुख वाले, विशाल शरीर वाले और बड़े ही भयानक हैं।

रावण ने सोचा, कि चलो शुक की इस बात को तो मैं मान ही सकता हूँ। कारण कि एक बँदर हमारी लंका में भी आया था। जिसने भारी उत्पात किया था। निश्चित ही वह वानर, समस्त वानर सेना में श्रेष्ठ होगा।

रावण अभी यह सोच ही रहा था कि शुक बीच में ही बोल उठा। कि हे नाथ, जो वानर यहाँ लंका में आया था, व जिसने आपके पुत्र अक्षय कुमार को मार डाला था, वह वानर तो पूरी वानर सेना में कहीं टिकता ही नहीं है। उसका बल तो वहाँ सबसे कम में आँका जाता है। उनसे तो करोड़ों गुणा बल वाले योद्धा वहाँ एक से एक हैं। रावण ने सोचा, कि भला ऐसे कैसे हो सकता है कि लंका जलाने वाला वानर, वानरों की सेना में सबसे कमजोर हो।

शुक ने कहा कि हे नाथ! आप भी क्या कहेंगे, कि मैं क्या कह रहा हूँ। लंका जलाने वाले वानर का तो वहाँ कोई नाम तक भी नहीं जानता। मुझे तो जिन योद्धाओं के नाम पता हैं, मैं उनके नाम आपको बताता हूँ-

‘द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।

दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि।।’

शुक ने इतने नाम गिनवाने के पश्चात कहा, कि वे सब योद्धा सुग्रीव के बल के समान हैं। शुक ने जब कहा, कि वे सब वानर राजा सुग्रीव के बल के समान हैं। तो निश्चित ही रावण का मन डोल गया होगा। कारण कि अकेले सुग्रीव में दस हजार हाथियों का बल था। वह बल तो एक तरफ, सबसे बड़ी बात, कि वह बालि का भाई था। वह बालि, जिसने रावण को छः माह अपनी काँख में दबा कर घुमाया था। अब बालि इतना बलवान था, तो सोचिए, उसका भाई सुग्रीव बल में कौन-सा कम होगा। लेकिन तब भी रावण ने भय को अपने मुख पर प्रगट नहीं होने दिया। किंतु शुक अपने मुख से वानर सेना के बारे में भयंकर से भयंकर भाषण दे रहा था। लेकिन शुक भी आखिर वानरों की कितनी महिमा गाता। अंततः उसके मुख से श्रीराम जी की महिमा फूटने लगी। यह भला रावण को क्यों भाती। शुक ने अनेकों तर्क व नीतियां कहीं, कि रावण श्रीराम जी की शरणागत हो जाये एवं श्रीसीता जी को वापस लौटा दे। शुक रावण को श्रीलक्ष्मण जी का पत्र भी पढ़ने को देता है। जिसे पढ़ एक बार के लिए वह और भयभीत हो जाता है। लेनिक शुक को श्रीराम जी की निरंतर महिमा गाते देख, वह अतिअंत क्रोधित हो उठा एवं रावण शुक को भी ऐसे ही लात मारता है, जैसे उसने श्रीविभीषण जी को लात मारी थी। रावण शुक का भयंकर अपमान करता है। शुक भी सोचता है, कि रावण समझने वाला नहीं, इसलिए अब से रावण के समक्ष अपने सीस को नहीं झुकाना है। यह सीस अब झुकेगा, तो केवल मात्र श्रीराम जी के चरणों में ही झुकेगा। अन्यथा मुझे प्राणों की आहुति देना स्वीकार है। यह सोच शुक रावण को बिना प्रणाम करे, रावण की सभा से लौट गया एवं वापिस श्रीराम जी के श्रीचरणों में जा पहुँचा। और लंका में घटा संपूर्ण संवाद कह सुनाया। तब श्रीराम जी ने शुक को खूब प्रेम व स्नेह दिया। और शुक ने श्रीराम जी की कृपा से अपनी गति पाई।

आगे प्रसंग किस दिशा की ओर करवट लेता है, जानेंगे अगले अंक में—(क्रमशः)—जय श्रीराम।

-सुखी भारती

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