धर्म-अध्यात्म

जैसी हमारी करनी होगी वैसे ही अंत में हमारी गति होगी- पं. अजय शास्त्री

देवास। न जाने कब बुलावा आ जाए, इसलिए श्मशान में पहुंचने से पहले ही अपनी करनी, अपने कर्मों को सुधार लो। जैसी हमारी करनी होगी वैसे ही अंत में हमारी गति होगी। जीते जी ऐसी करनी कर लो, जिससे अंत समय में पछतावा ना हो, दुर्गति ना हो। धन-दौलत है तो उस पैसे को परमार्थ के कार्य में, धर्म के कार्य में अवश्य खर्च करें। कोई काम ऐसा कर लीजिए कि जाने के बाद भी यह दुनिया याद रखें।

यह विचार भोपाल रोड स्थित आंवलिया पिपलिया में श्रीमद् भागवत कथा के दौरान व्यासपीठ से पं. अजय शास्त्री सिया वाले ने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा जो नियम का पक्का होता है, जो नित्य कर्म करते हुए भी प्रभु का स्मरण करता रहता है, उसे मंदिर जाने की जरूरत नहीं पड़ती। परमात्मा को हर जगह देख सकते हैं, हर जगह महसूस कर सकते हैं। बस परमात्मा के प्रति भाव निर्मल होना चाहिए। परमात्मा को प्रकट करने की सामर्थ्य होना चाहिए। परमात्मा तब प्रकट होते हैं, जब हृदय निर्मल होता है।

Bhagvat katha

उन्होंने कहा जो झुक जाता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। एक डोंगला नदी में भयंकर बाढ़ में भी नहीं बहता है, क्योंकि वह झुक जाता है। जो झुक जाता है, वह बच जाता है और जो अकड़ जाता है वह उखड़ जाता है। उन्होंने कहा हर माता-पिता अपने बच्चों में झुकने के संस्कार डालें। संसार में नमन बड़ी चीज है। जो नम जाता है, वही बच जाता है।

उन्होंने कहा संसार में जो व्यर्थ है, उन चीजों को मानव ग्रहण कर रहा है। जिसका अर्थ है, जो उपयोगी है, उसका तिरस्कार कर रहा है। मन में जो विकार रूपी कचरा भरा है, उसे परमात्मा की भक्ति के द्वारा ही दूर किया जा सकता है।

कथा के चौथे दिन श्रीकृष्ण जन्मोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। जैसे ही भगवान श्री कृष्ण बाल रूप में कथा पंडाल में आए श्रद्धालुओं ने पुष्पवर्षा कर स्वागत किया। आयोजन समिति के बाबूलाल शर्मा, संजय शास्त्री, अनिल सर सहित धर्मप्रेमियों ने व्यासपीठ की पूजा-अर्चना कर आरती की। धर्मप्रेमियों ने कथा श्रवण कर धर्म लाभ लिया।

 

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