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    गर्मी में राहत का देशी उपाय: मटके का पानी बना पहली पसंद

    ByNews Desk

    Apr 18, 2025
    देशी मटके
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    – स्टाइलिश डिजाइन के मटकों की बढ़ी मांग

    बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। गर्मियों का मौसम आते ही जहां एक ओर बिजली की कटौती और लू के थपेड़े लोगों को परेशान कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों में मिट्टी से बने मटके एक बार फिर से लोगों की पहली पसंद बन गए हैं। स्थानीय मटकों की डिमांड आसपास के गांवों, नगरों व शहरों तक है। यहां के मटके अपने ठंडे पानी के लिए जाने जाते हैं।

    उल्लेखनीय है, कि 90 फीसदी ग्रामीण परिवार आज भी पीने के लिए मटके का पानी इस्तेमाल कर रहे हैं। मटके का पानी न सिर्फ स्वादिष्ट होता है, बल्कि सेहत के लिए भी लाभकारी माना जाता है।

    बड़े-बुजुर्गों का मानना है, कि मटके का पानी फ्रिज के पानी की तुलना में ज्यादा ठंडा और सौम्य होता है। इससे गले में खराश, सर्दी-जुकाम या पेट की समस्याएं नहीं होतीं। वहीं दूसरी ओर, फ्रिज का अत्यधिक ठंडा पानी कई बार सेहत पर नकारात्मक असर डाल सकता है। गर्मी में मटका केवल एक बर्तन नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक फ्रिज बन चुका है।

    मटके का सही उपयोग कैसे करें?
    बुजुर्गों का कहना हैं, कि नया मटका खरीदने के बाद उसे इस्तेमाल से पहले ठंडे पानी में भिगोना जरूरी होता है, लेकिन मटके के अंदर हाथ डालकर उसे नहीं धोना चाहिए, क्योंकि इससे उसकी भीतरी सतह को नुकसान पहुंच सकता है।

    मटके का पानी लंबे समय तक ठंडा बना रहे, इसके लिए कई देशी उपाय अपनाए जा सकते हैं। मटके के नीचे मिट्टी से भरा सकोरा (छोटा मिट्टी का बर्तन) रखा जाना चाहिए। सकोरे में समय-समय पर पानी डालकर मिट्टी को गीला करने से मटका प्राकृतिक रूप से ठंडा रहता है। वहीं, घड़े को बाहर से सूती गीले कपड़े से लपेटने से भी पानी की ठंडक बनी रहती है।

    बेहरी में बनते हैं खास मटके-
    स्थानीय प्रजापति समाज के कारीगरों की मेहनत से बेहरी गांव मिट्टी के मटकों का बड़ा केंद्र बन चुका है। यहां बनने वाले मटके न सिर्फ आसपास के गांवों, बल्कि नगरों व शहरों तक भेजे जाते हैं। मटकों को अब पारंपरिक डिजाइन से हटकर स्टाइलिश लुक में भी तैयार किया जा रहा है, ताकि ये आधुनिक घरों की शोभा भी बन सकें।

    मटका बनता कैसे है?
    प्रजापति समाज के लोगों ने बताया एक अच्छा मटका बनाने के लिए सबसे पहले बारीक छननी से छानी गई साफ मिट्टी की जरूरत होती है। इसे पानी के साथ अच्छी तरह गूंथा जाता है और चाक (घुमावदार उपकरण) पर आकार दिया जाता है। फिर इसे कुछ समय सूखने के लिए रखा जाता है और बाद में भट्ठी में पकाया जाता है। पकने के बाद मटके को ठंडा कर उस पर डिज़ाइन या पॉलिश की जाती है, जिससे उसकी खूबसूरती बढ़ जाती है।

    मटके का पानी: स्वास्थ्य और परंपरा का संगम
    आज के समय में जब हम आधुनिक तकनीक और मशीनों पर निर्भर होते जा रहे हैं, मटका एक ऐसा विकल्प है जो हमें प्रकृति के करीब लाता है। आयुर्वेद चिकित्सकों के मुताबिक मटके का पानी न सिर्फ हमें गर्मी से राहत देता है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों की जीवनशैली और परंपरा का प्रतीक भी है। मटके का पानी सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाता है, जबकि फ्रिज के पानी से सेहत संबंधित समस्या हो सकती है।

    गर्मी के इस मौसम में मटका केवल एक बर्तन नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक और सेहतमंद जीवनशैली की ओर लौटने का माध्यम बन गया है।