देवास। आयुर्वेद की धरोहर और औषधीय गुणों से भरपूर अश्वगंधा अब देवास जिले की पहचान बनने जा रही है। देवारण्य योजना के तहत आयुष विभाग की पहल से जिले में अश्वगंधा की खेती को नया आयाम मिल रहा है। किसान और स्व सहायता समूह दोनों इस औषधीय खेती को अपनाकर न सिर्फ आय का नया जरिया बना रहे हैं, बल्कि आयुर्वेदिक स्वास्थ्य मिशन में भी अहम योगदान दे रहे हैं।
जिले को आयुष मंत्रालय की ‘एक जिला, एक औषधीय उत्पाद’ योजना के अंतर्गत अश्वगंधा उत्पादन के लिए चुना गया है। इस दिशा में आयुष विभाग द्वारा किसानों और 30 स्व सहायता समूहों को विशेष प्रशिक्षण देकर अश्वगंधा की वैज्ञानिक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। संस्था सोलिडरी डाड के सहयोग से आयोजित प्रशिक्षण शिविर में वन समितियों को भी शामिल किया गया, ताकि ग्रामीण क्षेत्र के हर वर्ग को इस योजना से जोड़ा जा सके।
शिविरों में एनआरएमएल के पंकज ठाकुर, जिला आयुष अधिकारी डॉ. गिर्राज बाथम और आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. ममता जूनवाल मौजूद रहे। मास्टर ट्रेनर स्नेह मित्तल और धर्मेंद्र बैरागी ने तकनीकी पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दी। देवारण्य योजना के तहत अश्वगंधा की वैज्ञानिक खेती देवास को औषधीय खेती में आत्मनिर्भर बना रही है।
अश्वगंधा की वैज्ञानिक जानकारी और उपयोगिता:
अश्वगंधा का वैज्ञानिक नाम Withania somnifera है। यह एक बहुवर्षीय औषधीय पौधा है, जिसकी जड़ें प्रमुख रूप से औषधियों में उपयोग होती हैं। इसे आयुर्वेद में ‘बला-वर्धक’, ‘तनावनाशक’ और ‘रसायन’ औषधि के रूप में जाना जाता है। इसका प्रयोग शारीरिक और मानसिक ताकत बढ़ाने, नींद संबंधित समस्याओं में राहत देने, हॉर्मोन संतुलन बनाए रखने और इम्यूनिटी मजबूत करने के लिए किया जाता है।
खेती की तकनीकी जानकारी:
– मिट्टी: दोमट और अच्छे जल निकासी वाली भूमि उपयुक्त रहती है।
– बुवाई का समय: जून से जुलाई उपयुक्त समय होता है।
– सिंचाई: कम पानी में भी अच्छी उपज, ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं।
– कटाई: 5-6 महीने बाद जड़ें तैयार हो जाती हैं, जिन्हें उखाड़कर सुखाया जाता है।
– उपज: प्रति हेक्टेयर लगभग 4 से 5 क्विंटल सूखी जड़ें प्राप्त होती हैं।
बाजार में बढ़ती मांग:
अश्वगंधा की मांग देश और विदेश दोनों स्तरों पर तेजी से बढ़ रही है। विशेषकर कोविड के बाद प्राकृतिक इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में इसकी लोकप्रियता और मांग में काफी इजाफा हुआ है। औसतन अश्वगंधा की सूखी जड़ों का बाजार मूल्य 80 से 150 रुपए प्रति किलो तक होता है, जिससे किसान अच्छी आमदनी अर्जित कर सकते हैं।