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    संसार को नहीं, संस्कारों को बदलना है, तभी हम सतयुग की कल्पना कर सकते हैं – ब्रह्माकुमारी प्रेमलता दीदी

    ByNews Desk

    Feb 27, 2025
    Dewas news
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    देवास। निराकार परमात्मा शिव इस रात्रि के समय ही इस धरा पर अवतरित होते हैं, इसलिए इसे हम महाशिवरात्रि कहते हैं। परमात्मा शिव स्वयं इस सृष्टि पर अवतरित होकर हमें ज्ञान की बूंद-बूंद समझाते हैं। हमारे बुद्धि रूपी कलश में ज्ञान की बूंद पड़ती जाती है। जैसे-जैसे इस जल की बूंद बुद्धि के अंदर समाती जाती है, वैसे-वैसे हमारी बुद्धि शुद्ध होती जाती है और हमारा जागरण होता है- अज्ञान की नींद से जागरण की ओर कि मैं शरीर नहीं हूं, मैं एक चैतन्य शक्ति हूं, मैं एक चैतन्य आत्मा हूं। अभी हम अज्ञानता की गहरी नींद में हैं। हमें अज्ञानता की गहरी नींद से जागना है।

    ये विचार महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, कालानी बाग सेंटर पर आयोजित ध्वजारोहण एवं शिवलिंग की पूजा-अर्चना के दौरान जिला संचालिका ब्रह्माकुमारी प्रेमलता दीदी ने व्यक्त किए।

    प्रेमलता दीदी के सानिध्य में एवं मां चामुंडा सेवा समिति के समाजसेवी रामेश्वर जलोदिया के मुख्य आतिथ्य में परमात्मा शिव का ध्वजारोहण किया गया। इस अवसर पर केक काटकर संस्था से जुड़े सभी भाई-बहनों द्वारा शिवलिंग की पूजा-अर्चना की गई।

    दीदी ने आगे कहा कि हम सब चाहते हैं कि सृष्टि में परिवर्तन हो, लेकिन कौन इस दुनिया को बदलेगा? प्रतिज्ञा कीजिए कि मैं खुद को सतयुगी आत्मा बनाने के लिए तैयार हूं। जब तक हम अपने संस्कारों को नहीं बदलेंगे, तब तक संसार को नहीं बदल सकते। इसलिए हमें संसार को बदलने के बजाय पहले खुद के संस्कार बदलने होंगे। लेकिन आज जितनी भी मेहनत हो रही है, वह संसार को बदलने की हो रही है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, अहंकार को ही हमने अपने संस्कार मान लिया है। फिर जैसा संस्कार, वैसा ही संसार होगा।

    संसार इस समय कलयुग की घोर रात्रि के दौर से गुजर रहा है। यह अब सिर्फ रात्रि नहीं, बल्कि घोर रात्रि हो गई है। हम अपनी दुनिया को घोर कलयुग कहते हैं। अच्छे संसार के लिए अच्छे संस्कार बनाने होंगे। हमें काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, अहंकार रहित जीवन जीना चाहिए।

    कार्यक्रम पश्चात महाप्रसाद का वितरण किया गया।