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सोशल मीडिया में रील्स की भरमार कौन जिम्मेदार?

ByNews Desk

Jan 18, 2025
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सोशल मीडिया में रील्स का बढ़ता प्रभाव समाज के लिए चिंता का विषय

आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया न केवल संवाद का साधन बन गया है, बल्कि यह लोगों की अभिव्यक्ति, मनोरंजन और आत्म-प्रदर्शन का सबसे बड़ा मंच भी बन चुका है। खासतौर पर रील्स ने सोशल मीडिया को एक नई पहचान दी है। छोटे-छोटे वीडियो, जिन्हें रील्स कहते हैं, आज हर वर्ग के लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं। बच्चे, युवा और बड़े-सभी इसके दीवाने हो रहे हैं। लेकिन क्या यह बढ़ता हुआ क्रेज समाज के लिए लाभकारी है, या इसके दुष्परिणाम अधिक हैं?

रील्स का आकर्षण:
रील्स का मूल उद्देश्य मनोरंजन है। इंस्टाग्राम, फेसबुक, और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स ने इसे बेहद सरल और आकर्षक बना दिया है। लोग कुछ सेकंड्स में अपनी प्रतिभा दिखा सकते हैं और लाखों लोगों तक पहुंच सकते हैं। यह प्लेटफॉर्म न केवल अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि लोकप्रियता और पहचान का साधन भी बन चुका है, लेकिन इस ‘लाइक और फॉलो’ की दौड़ में नैतिकता और सामाजिक मूल्यों की अनदेखी होना चिंताजनक है। लाइक और व्यूज पाने की लालसा में लोग ऐसे विषयों और कंटेंट को चुन रहे हैं जो अश्लीलता, फूहड़ता और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार को बढ़ावा देते हैं।

समाज और रील्स का बढ़ता प्रभाव-
सोशल मीडिया ने जिस प्रकार हर हाथ में मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा दी है, वह अपने आप में एक क्रांति है, लेकिन इस क्रांति के सकारात्मक पहलुओं के साथ इसके नकारात्मक परिणाम भी स्पष्ट रूप से दिखने लगे हैं।

1. बच्चों पर प्रभाव:
आज छोटे-छोटे बच्चे रील्स के आकर्षण में पड़कर अपनी पढ़ाई-लिखाई से दूर हो रहे हैं। स्क्रीन के अधिक प्रयोग से उनका मानसिक और शारीरिक विकास बाधित हो रहा है।
2. नैतिक पतन:
रील्स में व्यूज और लाइक पाने के लिए अनैतिक, अश्लील और असंवेदनशील विषयों का उपयोग बढ़ रहा है। यह समाज की सामूहिक मानसिकता को कमजोर कर रहा है।
3. समय का दुरुपयोग:
लोगों का अधिकांश समय रील्स देखने और बनाने में व्यतीत हो रहा है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित कर रहा है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को भी कमजोर कर रहा है।

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रील्स के बढ़ते प्रचलन का कारण-
रील्स की लोकप्रियता के पीछे तकनीक और मनोरंजन का अद्भुत संगम है। इसके साथ ही, भारतीय फिल्म और टीवी संस्कृति ने भी इसकी नींव रखी है। जहां एक ओर फिल्में और टीवी शो लंबे समय तक मनोरंजन का साधन रहे हैं, वहीं अब रील्स ने इसे छोटा और सरल बना दिया है।
रील की दुनिया इतनी जल्दी क्यों फैल रही है। यह जानने के लिए हमें फिल्म के इतिहास को देखना पड़ेगा। भारत में पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र 1913 में बनी जो की एक मूक फिल्म थी। इसके कुछ वर्षों बाद 1931 में भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा बनी। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लगभग 20 भाषाओं में 1500 से 2000 के बीच फिल्म बनती है। इसके अलावा विदेशी भाषाओं की फिल्मों को भी हिंदी एवं अन्य भाषा में डब करके रिलीज किया जाता है। पिछले 111 वर्षों से भारत में विभिन्न प्रकार की फिल्में बन रही है। इसके बाद टीवी, फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम इन सब चीजों के सामूहिक प्रभाव ने पिछले वर्षों में लोगों की मानसिकता में परिवर्तन किया है। यही कारण है कि आज सोशल मीडिया पर रील्स बड़ी मात्रा में आ रही है।

दूरसंचार की क्रांति ने प्रत्येक व्यक्ति के पास मोबाइल पहुंचा दिया है। यदि इस पर नियंत्रण रखा जाए तो समाज को एक अच्छी दिशा मिल सकती है लेकिन अनियंत्रित होने के कारण यह विनाशकारी साबित हो रही है। पानी कितना सरल और निर्मल होता है लेकिन जब यह बाढ़ के रूप में आता है तो विनाशकारी हो जाता है। यही स्थिति सोशल मीडिया पर रिल के बारे में भी लागू होती है। इसको रोकने के लिए भी हमें स्वयं को तो नियंत्रित करना ही होगा लेकिन कानून के द्वारा भी इस पर नियंत्रण लगाया जाना जरूरी है। छोटे-छोटे बच्चे मोबाइल की लत से पीड़ित है। उनका पढ़ाई में भी मन कम लग रहा है और इस कारण पूरा परिवार दुखी है।

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अति सर्वत्र वर्जिते यह वाक्य इस पर बिल्कुल सही बैठता है। मोबाइल की आदत इतनी हो गई है कि व्यक्ति अपना अधिकांश समय इसी में बिताता है। छोटे बच्चे भी वर्तमान में इंस्टाग्राम, रिल और फेसबुक पर अपना अधिकांश समय बिता रहे हैं जिससे उनकी पढ़ाई अत्यधिक प्रभावित हो रही है। इन सब पर नियंत्रण के लिए घर परिवार, विद्यालय, कॉलेज और सामाजिक सभी स्तर पर हमें प्रयास करना होंगे तभी हम एक सु संस्कृत समाज की स्थापना कर पाएंगे।

क्या है समाधान?
रील्स और सोशल मीडिया के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।

1- परिवार और शिक्षा संस्थानों की भूमिका:
माता-पिता और शिक्षक बच्चों को सोशल मीडिया के सकारात्मक उपयोग के बारे में जागरूक कर सकते हैं।

2- कानूनी प्रावधान:
अश्लील और अनैतिक सामग्री पर रोक लगाने के लिए कड़े सेंसरशिप नियम लागू किए जाने चाहिए।

3- स्वयं नियंत्रण:
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आदतों पर नियंत्रण रखना होगा। सोशल मीडिया के अति प्रयोग से बचना और इसे एक सीमित और सकारात्मक माध्यम के रूप में उपयोग करना आवश्यक है।

समाज विकास में सहायक हों-
सोशल मीडिया और रील्स, यदि सही दिशा में उपयोग किए जाएं, तो ये समाज के विकास में सहायक हो सकते हैं। लेकिन इनका अनियंत्रित प्रयोग समाज में नैतिक और मानसिक पतन का कारण बन सकता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’। तकनीक का उपयोग तभी सार्थक है, जब वह मनुष्य के जीवन को सुधारने और समृद्ध करने में सहायक हो। अतः यह हमारा दायित्व है कि हम सोशल मीडिया और रील्स के प्रति जागरूक और जिम्मेदार दृष्टिकोण अपनाएं, ताकि एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज की स्थापना हो सके।

Mahesh soni

 

 

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