धर्म-अध्यात्म

चिंतन से ज्ञान के द्वार खुलते हैं, चिंता से अवरुद्ध होते हैं- पं. सुरेंद्र बिल्लोरे

– श्रीमद् भागवत ज्ञान महोत्सव में मनाया कृष्ण जन्मोत्सव

देवास। चिंतन और चिंता का एक ही आशय होते हुए भी इनमें बहुत अंतर है। चिंतन का अर्थ होता है, विचार करना और चिंता का अर्थ होता है, विचारों में घुलना। चिंतन में विचारों का प्रवाह होता है, जबकी चिंता में विचारों की उथल-पुथल मची रहती है।

चिंतन में विचारों का बोझ नहीं होता, चिंता में विचारों का बोझ होता है। चिंतन में मस्तिक और मन स्वच्छ रहते हैं, जबकि चिंता में दुख से आचन रहते हैं। वस्तुत चिंतन से ज्ञान के द्वार खुलते हैं, जबकि चिंता में अवरुद्ध हो जाते हैं।

उक्त उद्गार राधागंज खिंची चौराहा के पास श्रीमद भागवत कथा के चौथे दिन पं. सुरेंद्र बिल्लोरे ने कहे। भागवत कथा में हर्ष उल्लास, आतिशबाजी कर मटकी फोड़कर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। भगवान को माखन-मिश्री का भोग लगाया गया तथा पूरा पांडाल नंद के आनंद भयो जय कन्हैयालाल की.. से गुंजायमान हो गया।महिलाओं ने मंगल गीत गाए।

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इस अवसर पर श्री रणवीर हनुमान रामायण मंडल के अध्यक्ष अशोक जाट के साथ सतीश शुक्ला, अनुज पांडेय, आकाश मजावदिया ने व्यासपीठ का पूजन कर भगवताचार्य का चुनरी, पुष्प माला एवं श्रीफल से सम्मान किया। आरती मुख्य यजमान विनोदनी पांडेय, इंद्रकुमार पांडेय ने की।

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