आपका शहर

Birthday Special: गांधी परिवार के सदस्य वरुण गांधी ने विरासत में मिली राजनीति को छोड़ बनाई अलग पहचान

[ad_1]

भारतीय राजनेता फिरोज वरुण गांधी आज यानि की 13 मार्च को अपना जन्मदिन मना रहे हैं। छोटी सी उम्र में गांधी परिवार से अलग होने के बाद वरुण गांधी ने अपने दम पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है।

भारतीय राजनीति में गांधी परिवार के उभरते हुए सदस्य और पीलीभीत सांसद वरूण गांधी का आज के दिन यानी की 13 मार्च को जन्मदिन है। हालांकि पीलीभीत को वरुण गांधी की मां मेनका गांधी की कर्मस्थली कहा जाता है। लेकिन वह लोकसभा क्षेत्र का दायित्व फिलहाल वरुण गांधी संभाल रहे हैं। आपको बता दें कि वह देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी से ताल्लुक रखते हैं। वह भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पोते और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के परपोते हैं। लेकिन वरुण और उनकी मां भाजपा के साथ अपना राजनीतिक करियर आगे बढ़ा रहे हैं। आइए उनके जन्मदिन के मौके पर जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें…

जन्म और शिक्षा

वरुण गांधी के माता-पिता यानी की संजय गांधी और मेनका गांधी ने लव मैरिज की थी। वरुण गांधी का जन्म 13 मार्च 1980 को दिल्ली में हुआ था। लेकिन महज 3 महीने के उम्र में वरुण गांधी के सिर से उनके पिता संजय गांधी का साया उठ गया था। संजय गांधी की एक हवाई दुर्घटना में मौत हो गई थी। जिसके बाद उनकी मां मेनका गांधी ने उनकी परवरिश की थी। हालांकि राजनीतिक मतभेदों के कारण वह छोटी उम्र से ही अपने गांधी परिवार से भी दूर हो गए थे। वरुण ने अपनी शुरूआती पढ़ाई नई दिल्ली के शिक्षा मॉर्डन स्कूल से की। वहीं आगे की पढ़ाई उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन एक्सटर्नल सिस्टम से पूरी की है।

राजनीति में एंट्री

बता दें कि महज 19 साल की उम्र में वरुण गांधी अपनी मां के साथ चुनाव मैदान में देखे जाने लगे थे। वह पहली बार मेनका गांधी के संसदीय क्षेत्र पीलीभीत के चुनाव के दौरान दिखे थे। इस दौरान वह लगातार चुनावी रैलियों में उपस्थित होकर अपनी मां का साथ दे रहे थे। साथ ही वह लोगों के बीच अपनी पहचान भी बनाने के प्रयास में लगे थे। वरुण गांधी विरासत में मिली राजनीति को अपनी पहचान नहीं बनाना चाहते थे। वह चाहते थे कि लोग उन्हें उनके कामों के जरिए जानें और कांग्रेस या सोनिया गांधी के नाम पर उनकी पहचान लोगों के बीच में न बनें।

भाजपा ने दिया सहारा

साल 2004 के चुनाव में भाजपा ने वरुण गांधी को पार्टी के मुख्य प्रचारक के तौर पर उतारा। हालांकि इस दौरान वरुण ने अपने परिवार यानि की सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, राहुल गांधी या अन्य गांधी परिवार के सदस्यों पर कभी भी कुछ बोलने से इंकार किया। वहीं नवंबर 2004 में उन्हें बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह मिली। बेटे के राजनैतिक करियर को आगे बढ़ाने के लिए मेनका गांधी ने साल 2009 में अपनी सीट वरुण के लिए छोड़ दी। जिसके बाद 15वीं लोकसभा चुनाव के दौरान साल 2009 में बीजेपी ने साल 2009 में वरुण गांधी को आम चुनाव पीलीभीत लोकसभा सीट से उतारा। यहां पर वरुण गांधी ने जीत हासिल की।

अन्ना हजारे का किया था समर्थन

वहीं साल 2011 में वरुण गांधी जन लोकपाल विधेयक के पक्ष में मजबूती से खड़े दिखाई दिए। इस दौरान जब अन्ना हजारे को अनशन के लिए सरकार द्वारा अनुमति नहीं मिली थी तो वह वरुण गांधी ही थे। जिन्होंने अन्ना हजारे को अपने सरकारी बंगले से अनशन किए जाने की पेशकश की थी। वहीं जब अन्ना को जेल में बंद किया गया था। उस दौरान जनलोकपाल विधेयक बिल की संसद में पेशकश की थी। वह अन्ना हजारे के आंदोलन का समर्थन करने रामलील मैदान भी गए थे।

लोकसभा चुनाव पर फिर शुरू हुई चर्चा

साल 2013 में वरुण गांधी को राजनाथ सिंह ने पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया था। वह सबसे कम उम्र के महासचिव बने। साल 2019 में एक बार फिर वरुण गांधी पीलीभीत से सांसद चुने गए। उन्हें एक कुशल राजनीतिज्ञ के तौर पर देखा जाता है। बता दें कि इन दिनों वरुण गांधी अक्सर अपनी पार्टी यानि की भाजपा पर निशाना साधते नजर आ रहे हैं। हालांकि उन्होंने एक बार फिर पीलीभीत से लोकसभा चुनाव लड़े जाने का इशारा किया है। 

[ad_2]

Source link

Advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button